महारामायण | Maharamayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनेक रामायण वलसीङ्त रामायण मेरा पांडित्य च्व महारामायण च्च्ल्ु. गरुण ओर कागभुशगडी का सम्वाद = ( सुमेरु परवत्‌ पर ). < भुमिकारू ˆ रामोयण घड़ी विचित्र है। इस से दा क भाज तक किसी ने नहों लिखी । छागे चलकर कोई लिसगा कि नहीं, कौन जान स्ता है १ अव तक सैकड़ों और सहर लिखने वाले हो गये । दिनि भ्रति दिन जगत मेँ अनेक प्रन्थ लिखे चौर छापे जाते है । चनौर भाज कल तो यह हो रहा है कि लिखने वालो की लेखनो उमड़ी हुई बाढ़ छी धार के समान रात दिन चला करती ह! प्रन्थो शौर पुस्तकों का समुद्र झकोले लिया करता है । अगर संसार की सारी पुस्तकों का संमद्‌ किया जाय, तो हिमालय चीर विन्ध्या पवतो जैसे बड़े बड़े पहाड़ घन जारथैगे । लेकिन रामायण अब तक रामायण है । किसी को यह साहस नदीं ह्या कि इस विलक्तणता का दूसरा भ्नन्थ रच सके । । सब से पिले आदि कवि बाल्मीकि ऋषि ने रामायण लिखी । इसके पीठे 'और कितनी लिखनेवालो ने परिश्रम किया । भारतवर्षं की प्रचलित भाषां म सब जगह रामायणं मिलेंगी । राम नाम मद्दा मंत्र बन गया है और जहाँ देखिये मददल, मकान, मॉपड़ो, मैदान सब जगदद गूँजा हुआ सुनाई दिया करता है । ३५० सौ वषं के लगभग हूए पवित्र काशी में गोस्वामी तुलसौदासजी महाराज ने पूर्वी बोली मे अपनी रामायण लिखी । यद सारी रामायणो मे सबसे अधिक सर्वप्रिय है । बाल्भीकिं रामायण के विषय में, मैं कुछ नहीं क सक्ता । बह जैसी है वैसी है । संस्छृत में होने के कारण उसके पढ़ने वाले बहुत थोड़े रद गये है । तुलसीकृत रामायण कां प्रचार सब जगह है। पंडित से लेकर साधारण हिन्दी पढ़े लिखे मनुष्य रात दिन 'उसे पढ़ते और गाते रहते है । उन्हें उससे छानन्द का रस मिलता है,। चौर जां तक मेर अपना विवार श्नौर विश्वास है, सौ में से कम से कम पिचहत्तर पदृने वारो का हृद्य मक्ति भाव से बद्‌ जाता है । यद इस पुस्तक की बहुत बढ़ी मदमा है, जो बाल्मीकिछत रामायण को भी प्राप्त नद्दीं हुई । - त॒लसीदोसन्ञी महाराज रामायण के समुद्र के बहुत बडे तैराक है । वह केवल तैरोक दी नदीं है बल्कि इस महासागर मे गहरी श्नौर देर की डुबकी लगाने चोले हैं। जो कोई उनके सभिकट छांजाता है वद्द राम की भक्ति के प्रेम जल के छींटों से उसे तरबतर कर देते हैं। और किसी किसी को तो इस भक्ति के समुद्र के ऐसे झनमोल मोती मुदरी भर भर कर दे देते हैः फि वह अयाय ( वपन ) दो जाता है । इस झपूर्व और अद्देत पुस्तक की जितनी प्रशसा की जाय वह थोड़ी है । मैं दिन्दी भाषा का पंडित नहीं हूं । मैंने हिन्दी में केवल या तो गोस्वामी तुलसी- कृत रामायण अनेक बार पढ़ी है या कबीर साइब की साखियों का झावलोकन किया है । . छागर इसे पांडित्य कद्दा जाय तो मैं केवल इन्दी दो भ्रन्थों का साघारण पठन पाठन करने चाला हूँ । तुलसीदासजी 'और कबीर साहब की बाणी के झतिरिक्त मैंने हिन्दी में छल नहीं पढ़ा और नकिसी से मुझे रुचि है ।




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