भारतीय इतिहास जी परिस्थित | Bhartiya Itihas Ki Paristhit (part-i)

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Bhartiya Itihas Ki Paristhit (part-i) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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$ ५३ (११ | भारतवष की भूमि १४ गङ्धा के खोत को भारतवर्ष की उत्तरी सीमा मानते थे । वे खोत आजकल की परिभाषा मे जङ्प्कर्ङ्कलामे है । इस प्रकार उस श्द्कला को हिमा- लय की गभ-श्रद्कता की केवल आवृत्ति मानते हए हम हिमालय की दिमरेखा को भारतवषं की प्रायः ठीक उत्तरी सोमा कह सकते है । इ, हिमालय के प्रदेश (१) हजारा, कश्मीर, कष्टरार, दार्वामिसार सिन्ध ओर कृष्णुणगा-जेहलम नदियों के बीच हिमालय का सब से पच्छिमी जिला हजारा रै जिस का प्राचीन नाम उरशा था । वह रावल- पिणडी के सीधे उत्तर और पामीर के सीधे दक्खिन है। कुन्हार नदी की दून उस में उत्तर-दक्खिन सीधा रास्ता बनाये हुए है । कश्मीरी लोग जेहलम नाम नहीं जानते, वे उसे व्यथ (वितस्ता)र कहते है । व्यथ की चकरदार उपरली दून ही बह कश्मीर है जिस के विषय मे कवि ने कदा है-- अगर फिरदोस बर-रूए जमी अस्त हमीनस्तो हमीनस्तो हमीनस्त । अथात्‌ यदि जमीन के तरते पर कदी स्वगं है तो यही है हिमालय को गर्भ. शृङ्खला से एक वांही फूट कर व्यथ श्नोर कृष्णगगा का पानी बँटती हुई पूरब से पच्छिम जा कर दक्खिन सड गयी है-- वही भोतरी श्ह्वला कै हरमुक (हरमुकुट) ओर काजनाग पहाड़ हैं । कुछ श्रौर प्रव से एक र बाँही गभे-श्ङ्कला से दकिन उतरी है जिसके शुरू में अमरनाथ तीर्थ है। वह परमरनाथ-श्रद्धला व्यथ के द्कखिन-प्रवी झन्तिम स्रोतों का घेरा करती उत्तर- पच्छिम धूम गयी है शरोर आगे पोर-पंचाल शद्भला कहलानी है। भीतरी शह्कला के यदी सव पहाड़ कश्मर कौ ८४ मोल लम्बो २५ मील चौड़ी दून को चारो तरफ से घेरे हुए है । 9. चा० पु०, १, ४५, ८१। २, कोष्टों में प्राचीय संस्कृत नाम हैं । र




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