आठ सेर चावल | Aatha Ser Chaval

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Aatha Ser Chaval by के. संतनाम - K. Santnam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ) एक श्वेत चादर सेढका प्रतीत होता था। जब गंगा नदी बंगाल में प्रवेश करती है तो उसकी कई शाखाएँ हो जाती हैं । हुगली; जिसके तट पर कलकत्ता बसा है, उन्हीं में से एक हे | लेकिन उनमें सबसे बड़ो हे पद्मा। सामान्यतः यह एक मील से अधिक चौड़ी है ओर अनेक स्थानों पर इसकी चौड़ाई दो-तीन मील भी है । मेघना, जो ब्रह्मपुत्रा की एक शाखा है, इतनी ही बड़ी है ओर इसी के निकट बहती है । बाढ़ के दिनों में दोनों में बहुघा भारी प्रतिरपद्धा रहती है। इन दोनों बड़ी धाराओं के मध्यवर्ती कत्र में बसे हुए गाँवों को सेव खतरा बना रहता हे। हर साल कुछ स्थानों पर हजारों एकड़ जमीन पानी में डूब जाती है और कुछ में ऊपर उभर आती है । इस कत्र में घरों की छतें आर दीवार टीन की बनती हैं । जब घर पानी में डूत्र जाते हैं तो टीन की चादर हर ली जानी हैं ओर फिर निकटतम सूखी भूमि पर नये मकान खड़े कर लिये जाति हैं । यहाँ केवल घान और पटसन की खेती होती दे । मुख्य बाढ़ के पहले ही चेत जोतकर धान के वीज फैला दिये जति दै। धान का पौधा पानी की सतह से ऊपर उगता रहता दै । ऊंचाई में यह अप फुट का हो जाता है। दिसम्बर के शुरू में जब बाढ़ समाप्त हो जाती है यह कटाई के लिये तैयार होता है । अनेक स्थानों पर घान काटकर नावों में भर लिया जाता है.। चारा अकसर दाने की कटाई के एक महीने बाद काटा जाता है। सुन्दरगंज' गाँव और शंहर के बीच का स्थान था । उसमें दो




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