रीति - काव्य की भूमिका | Riti Kavy Ki Bhumika

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Riti Kavy Ki Bhumika by डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ ‡ रीति-काव्य को एतिहासिक पृष्ठभूमि राजनीतिक रिथति आज पं° रामचन्द्र शुक्ल द्वारा किया हुआ हिन्दी-सादहित्य का काल-विभाजन प्रायः स्वैमान्य-सा ही हो गया हं--ओौर वास्तव मं सवेया निर्दोष न होते हए भी, वहु बहूत- कुछ संगत तथा विवेकपूर्ण ह । उसके अनुसार रीति-काल के अन्तर्गत सं० १७०० से सं० १९०० तक पूरी दो शताब्दियाँ आ जाती हैं । सम्वत्‌ १७०० से १९०० तक भारत का राजनीतिक इतिहास चरम उत्कर्ष को प्राप्त मुगरु साम्राज्य की अवतति के आरम्भ ओर फिर क्रमशः उसक पूणं विनाश का इतिहास है । सम्वत्‌ १७०० में भारत के सिंहासन पर सम्राट्‌ शाहजहाँं आसीन था। मगल वैभव अपने चरम उत्कषं पर पहुँच चुका था--जहाँगीर ने जो साम्राज्य छोड़ा था, चाहजहाँ ने उसकी और भी श्री-वृद्धि और विकास कर लिया था । दक्षिण में अहमद- नगर, गोलकुण्डा और बीजापुर-राज्यों ने मुगलो का आधिपत्य स्वीकार कर ल्या था, और उत्तर-पदिचम में सं० १६९५ में कन्घार का किला मुगलों के हाथ में आ गया था । अब्दुल हमीद लाहौरी के अनुसार उसका साम्राज्य सिन्ध के लहिरी बन्दरगाह से लेकर आसाम में सिलहट तक और अफगान-प्रदेश के बिस्त के किले से लेकर दक्षिण में औसा तक फैला हुआ था । उसमें २२ सूबे थे, जिनकी आमदनी ८८० करोड़ दाम अथवा २२ करोड़ रुपया थी । देश में अखण्ड शान्ति थी; खजाना माला-माल था। हिन्दुस्तान की कला अपने चरम वैभव पर थी । मयूर-सिहासन और ताजमहल का निर्माण हो चुका था । परन्तु उत्कर्ष के चरम बिन्दु पर पहुँचने के उपरान्त यहीं से अपकर्षे का भी आरम्भ हो गया था । अप्रतिहत मुगल-वाहिती पर्चिमोत्तर प्रान्तो मं लगातार तीन बार पराजित हुई--मध्य एशिया के आक्रमण बुरी तरह विफल हुए । इन विफलताओं से न केवल धन-जन की हानि हुई, वरन्‌ मुगल-साम्राज्य की प्रतिष्ठा को भी भारी धक्का लगा । उधर दक्षिण में भी उपद्रव आरम्भ हो गए थे । बाहर से यद्यपि हिन्दुस्तान सम्पन्न और शक्तिशाली दिखाई देता था, परन्तु उसके अन्तस्‌ में अज्ञात रूप से क्षय के बीज जड़ पकड़ रहे थे । जहाँगीर की मस्ती और शाहजहाँ के अपव्यय दोनों का परिणाम अह्वितिकर




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