दशावतार कथा | Dashavatar Katha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ .९ 1
करः विष्टु के पास झाया : झौर हाथ जोड़ कर अदी नख्तासे
बोला “ दे सगवन् | झाप घ्र्ा दो कर साध की रखना फरते हैं,
घिप्णु वन कर जगत् की रक्षा करते हैं. श्औौर शिव वन कर जगत्
का नाश करते हैं । छाप पक दी हैं, किन्तु कार्य के लिये इन तीनों
रूपो को धारण करते हैं ।”' यदि झाप की इच्छा है कि ज़रूर दही
सतुद्र का मथनः फिया जाय, तो श्राप कोई पेसा उपाय करें जिस
से मन्दर प॑त पाताल न चला जाय । बहुत दी अच्छा छोता,
यदि अप उस को धारण करने कै लिये स्वीकार करते । समुद्र
कौ दीनता भरी ऐसी वाणी खुन कर विष्णु ने मन्द्र का घारण
करना स्वीकार कर लिया झौर झाप पक्त चुत वड़े शरीर वाला
रूम ( कछुआा ) चन गये झौर समुद्र में झपने दाथ पैर फेला कर
बघर इधर घूमने लगे । उस समय इन के हाथ पैर के धक्के से
समुद्र में चढ़ी यढ़ी. लद्वरें उठ कर छाकाश में ज्ञा लगीं । थोड़ी
देर वाद उन ने चड़े वेग से मन्दर पर्वत को उठा कर अपनी पीठ
पर रख लिया और उस फ़े खड़े जोक को पेसे सहन कर लिया
जेंसे चुद्धिमन् सचुष्य अपना कायं सिद्ध करने के लिये नये दुष्ट,
राजा के अन्पार्यों को सह लेसा है । फिर विष्णु कमै सस्मति से
सर्पौ के महाराज *' वाखुकति ” मथने के लिये उोगी बनाये ॥
उन बङी मरो डोरी के समान -वाउुकति से यदद मन्दराच्ल
ज़पेदा गया। देवता अर दैन्य सपुद् के झथाद जल में लमर
क्ये । दैत्य त्राुककि के सुद कौ ओर, घौर देवता पूछ की श्योर
खड़े दो' गये । फिर दैत्यों, ने वाखुछ को गला' पकड़ कर और
देवता ने पू -पकषट कर सचना रस्म कर्. दिवा । उल्ल,
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