थियोसोफी (ब्रह्मा ज्ञानं ) | Thiyasophy (brahma Gyan)

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Thiyasophy (brahma Gyan) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) हमारे स्थूल शरीर की छाया है । यह' जीवित अवस्थामे स्थूरु छरीर से नीं निकलता है । परंतु कभी २ किसी रोगी अवस्था में थोड़ा दूर भी हो ज्ञाता है। सूये से जो प्राण आते हैं उन्हें लेकर यद्द दारीर दमारी शान नाड़ियों को तथा धारीर के रोर मागो को पुट करता है । स्थूर छरीर जच भरः जाता है तज यह उससे निकर पड़ता है शोर कु काल में नए हो जाता है । जो छिंग शरीर * है वद हमारी सब कामनाओं का वासस्थान है इसलिये उसे कामरूप भी कदतेहैं । जब स्थूल इंद्रियों के क्षानतंतु श्रर ईथरमय छरीर द्वारा बाष्यन्ञान इस दारीर में पहुंचता है तब हसे सपशीदि शान होता है। आरंभ काल में यह शरीर बादल सा, घिनां स्पष्ट आरति का ब्रोर मैला सा रहता है। जब जीव की कुछ उन्नति होती है तब चदद रुपप्ट, साफ़ रोर ठीक आछति का बन ज्ञाता है । हम लोगों का प्रायः ऋ एस्ट्रल के लिये' यहां लिंग शरीर व्यवहार किया हैं, वेदान्त वा सांख्य में इस शब्द का अर्थ दूसरा है ।




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