दुर्गा प्रशाद स्मृति ग्रन्थ | Durga Prasad Smriti Granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शी दुर्गाप्रिसाद स्मृर्तिनग्रन्थ ५,
व गगं* के उत्साह का परिणाम होगा । हाँ, उसमें चिपटना तो होगा ही । सी इस दरीर
का और होना ही क्या है ? क्या ही अच्छा हो जो इन सस्थाओं की सेवा करते हुए
ही दम निकले और शहर की शिक्षा सवधी दोनो आवश्यकताएं मेरे सामने ही पूरी
हो जाय ।”
परिस्थिति वद्च हम तीनो भाइयों को अपनी जीविकोपाजंन के लिए दिल्ली ही
रहना पडा- अतं. पासं रहकर उनकी सेवा करने का सौभाग्य प्रप्त न कृर सके । जून
१९६१ में मैने पिता जी को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए लिखा, उन्होने
उत्तर मे मुझे लिखा--
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किसी को क्या पता था कि वे अपनी इस दौड-धूप का फल स्वय न देख
सकेगे ओर मृत्युशय्या पर पड़े उनके अन्तिम शब्द “कालिज का काम भी अधूरा ही रह
गया” सत्य प्रमाणित होगे तथा एक महीने 'से पहले ही (७ जूलाई, १९६१) भगवान्
पूज्य पिता जी को इस ससार से उठाकर हमें सदा के लिए उनकी अमूल्य छत्रछाया से
वचित कर देंगे ।
पूज्य पिता जी की उत्कट इच्छा थी कि में भी उन्ही की भाँति अनूपदाहर
कालिज की सेवा करूँ । इसी उद्देद्य से प्रेरित हो में सन् १९४७ ई० में नौकरी छोड
कर दिल्ली से अनूपशहर गया । वहाँ कालिज और रामस्वरूप आयें कन्या-पाठशाला
की भरसक सेवा की 1 परन्तु अपनी पत्नी की अस्वस्थता के कारण मुझे सन् १९५९ में
फिर दिल्ली आना पडा । इसके एक वपं वाद पूज्य पिता जी ने मुझे फिर लिखा--
“मेरों ६० वां वषं पूरा होने में लगभग २० दिन शेष हे । मेरी हार्दिक इच्छा
है कि इसके पश्चात् तुम कायेभार समारो, परन्तु जव तक तुम वहां से सपरिवार न
लौट आओ, यह् कल्पनामात्र है ! हा, यदि राजकीय पद की छाँट मे आ जाओ तो यहाँ
आने की प्रइन ही नही उठता क्योकि उसे त्यागना ठीक नही होगा । इसके अतिरिक्त
और किसी भी दशा में तुम्हारा अन्यत्र रहना ठीक नही है। इस लिए नही कि में
नितान्त अकेला नहीं रह सकता जैसे कि अब रह रहा हूं, बल्कि सस्था के हित मे यह
मत्यावदयक् जान पडता है 1
सस्था का कार्य उनकी मृत्यु के वाद भी ठीक तरह से चलता रहे इसे ध्यान
में रख कर अप्रैल १९५४ में उन्होने मुझे फिर लिखा--
“सो वेटा, मेरा स्वास्थ्य न जाने क्यो गिर रहा वताते हैं । अब में किसी कार्य
के योग्य नही रहा । यदि तुम सहमत हो तो इसी मीटिग में तुम्द मेनेजर निर्वाचित
भशरो भगवनीप्रसाद जी गर्ग |
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