जैसी ग्रंथावली और पदमवत अखरावट और आखिर कलम | Jaishi Granthawali Aur Padamvat Aakhravat Aur Akhir Kalam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
552
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मलिक महम्मद जायसी
सौ चषे पहले कवीरदास हिंदू और मुसलमान दोनों के:कट्टरपन को
फटकार चुके थे ।' पंडितों और मुन्ञाओं. की तो नही कह सकते; पर साधा-
रण जनता 'राम और रहीम' की एकता सान. चुकी थी] सधुचख। चार
फकीरों को दोनों दीन के लोग आदर और “सम्मान की दृष्टि से देखते थे ।
साघु या फकीर - भी' सर्वप्रिय वे ही हो सकते थे जो मेद-भाव.से -परे दिखाई
पडते थे! .बहत दिना तक एक साथ रहते रहते हिंदू और मुसलमान एक
दूसरे के सामने अपना अपनां हदय खोलने लगे थे, जिससं. मुष्यत क
सामान्य भावों कै प्रवाह मे म्र होने और मम करने का समय-आ गया था ।
जनता की प्रवृत्ति मेद से अभेद की ओर हो. चली थी । सुसलसान दिंदुञों
की राम-कंहांनी सुनने को. तैयार हो. गए थे और हिंदू सुसलमानों का दास्तान
हमजा ! नंल॑ और दमयंती की कंथा मुसलमान-जानने लगे थे ऑर . लला-
मजनँ की हिंदू । इश्वर तके पंहुँचानेवाला मागे -दढ़ने का सलाह भा दोनों
कभीं कंभी साथ बैठकर करने लगे थे । इधर . अक्ति-मागं के आचाय्य और
महात्मा सगवस्रेम को सर्वोपरि ठहरा चुके थे श्मौर उधर सूफी महात्मा सुस
लमानों को (इश्क हकीकीः.का सवक पढ़ाते आ रहे थे | |
चैतन्य महाप्रमु, वल्लभाचार्य और रामानंद के प्रभाव सं प्रसमरधनि
वैष्णव .धर्म का जो प्रवाह वंग देश से लेकर गुजरात तक वहाः, उसका सवर
अधिक विरोध शाक्त मत ओर वाम मागें के साथ दिखाई पड़ा 1 शाक्तमत-
विहित पशुहिंसा, मंत्र-तंत्र तथा यक्षिणी आदि की पूजा वेद्-विरद्ध अनाचार
केरूप में समभी जाने लगी । हिंदुओं और सुसलमसानों दोनों क॑ वाच
'साधुताः का सामान्य आइश प्रतिष्ठित हो यया था । चहुत से सुसलमान फकार
भी अहिसा का सिद्धांत स्वीकार करके सांस-भक्षण को चुरा कहने लगे थे ।
ऐसे समय मे कुद्धः यावक मुसलमान 'प्रेस की पीर की कहानियाँ लेकर
साहित्य-क्षेत्र सें उतरे । ये कहानियाँ हिंदुओं के ही घर चने थी | इससे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...