किसान और कम्युनिस्ट | Kisan Aur Kamyunist

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Kisan Aur Kamyunist by एन॰ जी॰ रंगा - N. G. Ranga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) पर फिरसे गम्भीर विचार करना शुरू किथा | यह परौच्तण अन बहुत ही श्रावश्यक हो गया था, क्योंकि कम्यूनिस्टों ने एकाएक किसानों की पीठ में छुरा भोंक दिया था श्रौर उनके बाहरी श्रौर भीतरी दुश्मनों कौ ताक्रतवर बनाया था | कम्पूनिर्ट पार्टी के साथ श्पने सिद्धान्तगत विरोधो के प्रति जो लोग श्रबतक उदासीन ये, ग्रत उन्हे बहुत गहरा धक्का लगा श्रौर कम्यूनिस्टों के देशद्रोही श्रौर नीचतापूणं श्राक्रमणों के कारण किसानों श्रौर उनके देशभक्त नेताश्रों ने इस श्रावश्यकता का श्रनुमभव किया कि वे कम्यूनिस्ट पार्टी के राष्ट्र-विरोधी श्रमारतीय शरीर गद्दार लोगों से किसान-श्राग्दोलन की जान बचाय । इस कट श्रनुभव से ही सन्‌ १६४२ म उत्त किसान-सभा के विरुद्ध किसान कांग्रेस का जन्म हुश्रा, जिसमें कम्यूनिस्ट भर गये थे श्रौर जिसका वे नकेल पकड़ कर नेतृत्व कर रहे थे । युवकों, विद्यार्थिपों शोर मज़दूर-संघ के काय- कर्ताश्रों को भी इसी प्रकार के कटु श्ननुभव हे, इस लिये हमारे देश में कम्यूनिस्टों द्वारा नियन्त्रित संस्थाश्रों से श्रलग किसान-कांग्र स, तरुणु- कांग्र स श्रौर राष्ट्रीय मज़दूर-कांग्र स श्रादि संस्थाश्रों का जन्म हुश्रा जो थोड़े ही समय में अपूव शक्तिशाली संस्थाये बन गई हैं । फिसान-काग्रस ही सबसे पुराना पङ्गटन था सन्‌ १६३५ मे श्राचायं रज्ञा श्रौर मोहनलाल गौतम श्रादिने किसानों के लिये एक श्रखिल भारतीय संगठन स्थापित करने का प्रयत्न भिया ग्रोर श्रप्रल सन्‌ १६३६ में लखनऊ में श्रधिवेशन करके एक संस्था बनाई जिसका नाम क्सान-कांग्रस रक्‍खा गया । इसका नाम किसान-कग्रंस इसलिये रक्वा गया था कि किसान-सड़ठन से यद श्राशा थी कि वह राष्ट्रीय महासभा के सामाजिक श्रौर राजनेतिक श्रादशों का अनुसरण करेगा । श्रौर इसका उद्देश्य था कि यह राष्ट्रीय




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