राजस्थानी भाषा | Rajasthani Bhasha
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ० सुनीतिकुमार चाटुजर्या - Dr. Suneetikumar Chatujryaa
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ राजस्थानी भाषा
विचार करने के लिए उसकी विशाल छाया में सम्मिलित हुई विभिन्न
प्रॉतिक बोलियों श्रौर भाषाओं की थोढ़ी-बहुत जानकारी करने की भी
श्रावश्यकता होती है । इस स्वल्प संयोग, तथा विषय पर गंभीर प्रम,
इन दोनों की शक्तिसे श्रपज्ञोगोंका श्राह्वान स्वीकार करनेमें मैं
साहसी हृश्चा हूं । श्ाज्ञोचना करते समय कुछ नवीन ज्ञान अवश्य ही
प्राप्त हुआ करता है; इस लोभ से भी मैं श्राप लोगों के सामने दाजिर
हुआ हूँ । ऐसा अवसर जो मुझे मिला है; वह श्राप लोगों की ही कृपा
का फल है; इसलिए मैं झाप लोगों का विशेष भारी हूँ ।
''राजस्थानी” भाषा के नाम से दमारे प्रांत के लोग ज्यादातर
परिचित नहीं हैं; यद्यपि इस प्रांत से व्यापार के लिए श्राये हुए और
वहाँ बसे हुए मारवाढ़ी सेठ साहुकारों के कारण ''मारवाढ़ी” बोली या
“मारवाढ़ी हिन्दी” का नाम सबको विदित है । पर श्रंग्र जी तथा देश-
भाषा में लिखी हुई भूगोल की पुस्तकों में उपलब्ध नहीं होते हुए भी;
घान्त-वाचक “राजस्थान”? यह नाम एक विशेष मयादा के साथ हम
सब कोई स्मरण करते हैं, खास करके हिन्दुओं में, आर शिख्ित लोगों
से । मुख्यतया एक विदेशी की राजस्थान पर प्रीति के कारण ऐसा
हो पाया । सन् १८२९ मं कनेज्ञ जेम्स टॉड ने लन्दन से अपना मदत्त्व-
पृण ग्रंथ-- इसे अमर प्रंथ भी कह सकते हैं-““श्रनालूज़, अंड झनूरि-
किटीज् श्रोफ राजस्थान? ( ^ 1111818 271 4 11614 1४168
फ.91858011870 ) दो खंडों में प्रकाशित किया था । निकलते दी इस
ग्रंथ ने भारत के हिन्दू साहित्य में ओर पुनजांयति के चेत्र में अपना
निराला स्थान बना लिया । टॉड का “राजस्थान” भारतीय भाषाश्रों मं
अनूदित दने लगा । बगल में ह० स० १८४० से लेकर इसके कड़े
अनुवाद निकलने हैं । इनमें एक पदयमय भी है ।
राजपूताने के वीर महाराणाझओं और अन्य राजाश्रों की श्रता भर
देश-प्रेमस की असर कहानी से परिचित होने का शुभ अवसर इस ग्रन्थ
से दुसरे प्रांतों के दिन्दुभों को मिला । राजपूत देशात्मबोध तथा राज-
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