राजस्थानी भाषा | Rajasthani Bhasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ राजस्थानी भाषा विचार करने के लिए उसकी विशाल छाया में सम्मिलित हुई विभिन्न प्रॉतिक बोलियों श्रौर भाषाओं की थोढ़ी-बहुत जानकारी करने की भी श्रावश्यकता होती है । इस स्वल्प संयोग, तथा विषय पर गंभीर प्रम, इन दोनों की शक्तिसे श्रपज्ञोगोंका श्राह्वान स्वीकार करनेमें मैं साहसी हृश्चा हूं । श्ाज्ञोचना करते समय कुछ नवीन ज्ञान अवश्य ही प्राप्त हुआ करता है; इस लोभ से भी मैं श्राप लोगों के सामने दाजिर हुआ हूँ । ऐसा अवसर जो मुझे मिला है; वह श्राप लोगों की ही कृपा का फल है; इसलिए मैं झाप लोगों का विशेष भारी हूँ । ''राजस्थानी” भाषा के नाम से दमारे प्रांत के लोग ज्यादातर परिचित नहीं हैं; यद्यपि इस प्रांत से व्यापार के लिए श्राये हुए और वहाँ बसे हुए मारवाढ़ी सेठ साहुकारों के कारण ''मारवाढ़ी” बोली या “मारवाढ़ी हिन्दी” का नाम सबको विदित है । पर श्रंग्र जी तथा देश- भाषा में लिखी हुई भूगोल की पुस्तकों में उपलब्ध नहीं होते हुए भी; घान्त-वाचक “राजस्थान”? यह नाम एक विशेष मयादा के साथ हम सब कोई स्मरण करते हैं, खास करके हिन्दुओं में, आर शिख्ित लोगों से । मुख्यतया एक विदेशी की राजस्थान पर प्रीति के कारण ऐसा हो पाया । सन्‌ १८२९ मं कनेज्ञ जेम्स टॉड ने लन्दन से अपना मदत्त्व- पृण ग्रंथ-- इसे अमर प्रंथ भी कह सकते हैं-““श्रनालूज़, अंड झनूरि- किटीज् श्रोफ राजस्थान? ( ^ 1111818 271 4 11614 1४168 फ.91858011870 ) दो खंडों में प्रकाशित किया था । निकलते दी इस ग्रंथ ने भारत के हिन्दू साहित्य में ओर पुनजांयति के चेत्र में अपना निराला स्थान बना लिया । टॉड का “राजस्थान” भारतीय भाषाश्रों मं अनूदित दने लगा । बगल में ह० स० १८४० से लेकर इसके कड़े अनुवाद निकलने हैं । इनमें एक पदयमय भी है । राजपूताने के वीर महाराणाझओं और अन्य राजाश्रों की श्रता भर देश-प्रेमस की असर कहानी से परिचित होने का शुभ अवसर इस ग्रन्थ से दुसरे प्रांतों के दिन्दुभों को मिला । राजपूत देशात्मबोध तथा राज-




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