बर्फ का संसार | Braph Ka Sansar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बफं के पहाड़ १९१
थी । बफं ्रह्यधिक सर्दीसे जम जनेके कारण धुते हुए संगमरमरकी
भोति सफद, चमकीली ग्रौर ससुत थी । हाँ, बीच-बीच में इधर-उधर
धरती की सतह से ऊची उटी हुड कु चोटियां थीं, बफ से ठको हृ शुभ्र
शंकु-सी । उनमें कुं तो सूयं की सुनहरी किरणों से नुकीले कच की तरह्
चमक रही थीं ग्रौर कु दुग्ध-फेन जेसी श्वेत । चिलचिलाती धूप मे इन
हिम-राशियों की छटा कुछ श्रनोखी ही होती है-जेसे किसी विशाल
बिल््लौरी शीशे पर सूयकी सीधी किरणे पड रही हों । सबका प्राकार पृथक-
पुथक था । किसी का छोलदारी जंसा, तम्बू जेसा या किसी मन्दिर के
गुम्बद से मिलता-जुलता । चोटियों के अ्रलावा ढलानों पर, पगडंडियों पर,
तथा खाइयों में दूर-दूर तक हिम का श्रखराड राज्य फला हुम्रा था, एकमात्र
हिम का राज्य !
बफें के इस पहाड़ पर चढ़ते समय हमें कई बार कठिनाई का सामना
करना पड़ा । बत्लम-सहित नुकीली छड़ी की सहायता से चार-चार, छः-छः
कदम पर रुककर हम उस विस्तृत हिम-प्रदेश तक जा पहुँचे । कंप-
कपाती सर्दी भेली, पतली हवा में शवास-प्रइवास की कठिनाइयों को सहन
किया । परन्तु ऊपर पहुंचकर जब हमने मव्य हिमि-मंडित गिरिम्णगोंको
देखा तब हमारी प्रसन्नता की सीमा न रही । हरय गद-गददहो उठा ग्रौर
मन बाँसों उछलने लगा । उस समय हमें कुछ ऐसा लगा जेंसे हम स्वर्ग में
ग्रा गयेहँ। मागं की समस्त थकरान का कष्ट जाता रहा । यहाँ प्रकृति श्रपने
पणं सात्विक स्वरूप मे शोभायमान थी । वातावरण शांतिमय था । नीला-
काश के नीचे शुश्र-किरीट वस्त्रधारी उत्तुग शंल-शिखर इतने मनोहारी
श्रौर सुहावने लग रहे थे कि उनसे लौटकर श्राने को जी नही चाह रहा
था । हिम-पव॑तों के विशाल समूह के बीच में स्थित यह रमणीय स्थान
अपनी श्रलौकिक सुन्दरता के लिए संसार में प्रसिद्ध है ।
सहसा ही कविवर श्वी रामधारी सिह् 'दिनकर' की थे पंक्तियाँ हमारे
घरों से फूट पड़ीं :--
‹“मेरे नगपति ! मेर विक्ञाल !
साकार, दिव्य, गौरव विरार 1!
पौरष के पुजोभूत ज्वाल !
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