बन्ध्या - गर्भिणी | Bandhya-garbhini

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Bandhya-garbhini by ठाकुर प्रसाद चतुर्वेदी - Thakur Prasad Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) छ-एसफेद फूत की भटकटइया की जड़ ऋजुसमय तीन दिन जल मं पीस कर सवेरे पीवे तो गभं स्थित होवे । ५-- स्त्री को नित्य मछली का मांस या कांजी या तिल या उडद या दही लखिल्लाग्रोतो रजो धम प्राप्त होकर बन्ध्या दोष निचृत्ति हो जायगा । ६--पुष्प नक्षत्र के तीन दिन में उखाड़ी हुई श्वेत करियाली की जड़ को दो तोला चूण दूध के साथ ऋतुक्ाल में तीन दिन बराबर पिलाने से निश्चय गे घारण होगा । गम के पहचानने के चिन्ह १--किसी का तो गये रहने के दुखरे दिन ही सबेरे जी मचलाने लगता है--मुख का रंग श्र ही हो जाता हे--देह भारी सी जान पड़ती है-स्त्री धर्म फिर नहीं होता-- भोजन में श्ररुचि हो जाती है--पुरुष के संग से मन दृट जाता है--श्ंगार करने को जी नहीं चाहता--उवकाई घ उल्टी श्राने लगनी है--पेट बढ़ने लगता है और शगीर दुबला हो जाता है श्रौर झालंस्य भौर हर समय भरा सा रहता है-- जी श्राराम करनेको चाहा करता है-नीचेके शसीरमें सुस्ती शधिक रह्दती है--खट्टी व सौधी चीज़ें खाने को जी बहुत चाहता है-दस्त खुल कर नहीं होता--नींद अच्छी नही आती--स्तनौ के मुख छाटे हो जाते हैं--श्ौर सब से चूक गर्भवती की पहिचान यह है कि थोड़े से शहद को पानी में मिलाकर स्त्री को पिला दो थोड़ी देर पश्चात्‌ टूड़ी में ॐ दूदू॑ ला मालुम दो तो जान लो कि गर्भ है वरनः नषा । न




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