वेदव्याख्या - ग्रन्थ भाग - 11 | Vedavyakhya Granth Bhag - 11

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Vedavyakhya Granth Bhag - 11  by विद्यानन्द 'विदेह ' - Vidyanand 'Videh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[७] सभी धार्मिक ग्रन्थों को वैदिक व्याख्या वहुत सीमा तक सफलतापुर्वेक की जा सकती है । [=] सभी भाषाओं में वेदों का प्रवेश सरलतया हो सकता है । [€] सब विज्ञानों का सूलख्रोत वेदों मे से खोजा जा सक्ता है । १८. अपनी उपयुक्त मान्यताओं के प्रकाश में, मैते श्रावणी, १९९३ विं० से ऋग्वेदे का हिन्दी-म्रनुवाद प्रारम्भे क्रिया । मृ सन्तोष है कि चारों वेदों का संगतियुक्त भाषानुवाद मैं अपनी मान्यताओं के अनुरूप करने में सफल होगया हूँ । १९. मेरा यह प्रयास केवल जनसाधारण के लिए है, यद्यपि विद्वानों को भी इससे प्रकाश मिछेगा । मेरा लक्ष्य सरल और सुवोध रीति से वेदों की दिव्य शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाना है । २०... चारों वेदों के मेरे हि्दी-वेदव्यास्याग्रत्थों के पुर्णतया श्रकाशित होने पर वेदप्रचार में एक कल्पनात्तीत क्रान्ति होगी ) सुक्ते विद्वास है कि मेरे व्याख्या-प्रन्यों के विइव की समस्त भाषाओं में अनुवाद होंगे और परिणामस्वरूप संसार वैदिक विचार, वैदिक भाचार श्रौर वैदिक संस्कृति को स्वीकार करेगा । उससे एक सावभौम वेदिक साम्राज्य [कुटुम्ब ] को स्थापना होगी, मतभेद समाप्त होगे, विख मे एक विशुद्ध मानव-धमं की प्रस्थापनां होगी, एक दिव्य युग का आविभवि होगा । २१. यह कार्यं मेरा व्यवसाय नहीं है, मेरे जीवन को एक प्रभु-प्रेरित दिव्य साध है । मैंने इसमें अपना जीवन, यौवन और स्वंस्वहोमा है । इसी के लिये में संसार आर सांसारिकता से सदा ऊपर उठा रहा हूं । इसी के लिए में जिया हूँ, इसी के लिये में जीरहा हूं । इसी के लिये में जीऊंगा । --विद्यानन्दं विदेह्‌ १४




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