श्री भागवत दर्शन [ खण्ड-२४] | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 24 ]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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त्याग तथा परोपकार १५ पूज्यपाद उद्या बाया ते मुझे, एक कहानी सुनाई धी । ऋछपीकेश मे एक वड सिद्ध महत्मा रते थे! धड़ दिद्टान्‌ थे । नम रहते थे, कभो किसो से कोई शब्द बोलते नहीं थे, सदा मौनी वने रहते । झपने हाथ से खाते भी नहीं थे। दूसरे लोग उन्दः खिलाते ये । सव लोग उन्हें ज्ञान की, छठी भूमिका में स्थित चताते थे । एक दिन सुना उस महात्मा को कोई चुरा ले गया । चहु महात्मानो ने द्‌ की उनका कदी पता नहीं ला । लोगों ने सममा उद्दोने जल समाधि से ली। कई वर्षों के पश्चात, पता लगा दे घस्वई में अमुक सेठ के यहाँ हैं। लोगों ने दर्शन भी किये । सेठ यड़े धर्मास्मा थे उनकी ख्रो भी बड़ी साघुसेवी भक्तिमती तथा साध्वी थीं। महात्मानी 'अच भी नंगे दी रहते थे । उनका सौन भी उसी प्रकार चलता था । सेठजी की कोठी के सव से ऊपर के सुन्दर कमरे में वे झफेले हो रद्दते थे । सेठानी की उनपर छनन्य श्रद्धा थी । वे तन मन धन से उनकी सवा करतीं । यह सेवा ऐसी वस्तु है, कि पत्थर का हृदय भी पसीज जाता है संसार में बल, युद्धि, साहस, श्रम तथा अन्य फिसी भी साधन से जो कार्य न हो सके, वह सेवा से दो सकता है। मदात्मा का भी चित्त खिंचने लगा । संयोग की बात, सेठजी एक छोटा सा बच्चा छोड़ कर इस लोक से चल बसे । फिर भी सेठानीकी श्रद्धा में कुछ फमी नहीं हुई। अब तो मददात्मा के हृदय में करुणा का स्रोत उमइने लगा । रथ थे लियफर थे




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