राष्ट्रीय राजमार्ग | Rastriya Rajmarg

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Rastriya Rajmarg by रमेश उपाध्याय - Ramesh Upadhayay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“असल भावय्विकता की यह मय न्तस रस श्वी कहानी के आग्रह पर आधारित है निकः संपूर्ण संसार की रचना की माँग करती पर रहे उमे गास्तविकछ ससार कौ लगभग स मनो्व्॑ञानिक धरातल पर सधन पूर्तता की कुछ सीमं होती है । वह र. ९० आसानी से न पकड़े जा सकने 1 कौ वध्य नही कर्ता । इसके विपरीते एतं [शत्य के रहते रचना कै सतार मे भावात्मक रुप से दो जाने का खतरा पाठक के लिए बना रहता है भर 'रचना के माध्यम से वस्तुस्थिति की सही समझ प्राप्त करके अपने आसपास के समान को वदतने की प्रक्रिया में निर्णायक हस्तक्षेप करने की गरूरत वह ममसूस नहीं करता 1 वर्दोल्ट ब्रेश्ट ने नाटक के क्षेत्र में इसीलिए नये परीक्षण किये थे, योरि नाटक का परम्परागते चित्य देक ` पर्‌. वैसा पिवारौत्तेजक भौर सचि हेम्तक्षेप करनेवाला प्रभाव नही उलि पाता था जिसकी वे अपेक्षा करते थे 1 निश्चित उदेश्य से लिखी जाने वाली रचना पाठक को शिक्षित करने का एक गम्भीर प्रयास होती है और इसीलिए वह कुछ हद सक कनि आर अमूत भी बसी रहती है । परन्तु जब पाठकों की मनोवैज्ञानिकता को निर्धारित करने वाले सामाजिक ढाँवे पर रचनाकार की नजर हो मौर उपे व्याख्यायित करने की जिम्मेदारी को वह प्रमुख मार्नता हो, तो * ऐसे मलगाव और अमूर्तेन का शिल्प उपे ज्यादा उपयुक्त दिखामी देतां ई ५ “शाष्ट्रीय राजमार्ग' यें भी अपनों कथावस्तु के अनुरूप ऐसे शिल्प का प्रयोग किया गया है जहाँ प्रत्येक छोटी-बड़ो घटना, बिव, केंद्रीय सूपफ़-- सब कुछ स्वतःस्फूर्त न होकर सोच-समझकर निर्मित किया हुआ दिखायी “देगा 1 मगर इस प्रकार का असूर्तन का प्रभाव इस कहानी की कोई कम- जोरी नहीं, बल्कि सायास उत्पन्न किया हुआ प्रभाव है । जनवादी लेखन की वस्तु में इधर जो परिवर्तन माया है, उसकी अनिवार्य लॉजिक के “तहत ही यह शिल्पगत परिवतेत भी रचना में जरूरी हो गया है 1 शनवादी कथपा-लेखन में एक नया बदलाव : १७




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