भगवान महावीर का श्री उत्तराध्ययन सूत्र | Bhagawan Mahaveer Ka Shri Uttradhyan Sutra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
205
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२. परीषह
ककेकेकी कीफे कवी वीक की की कली कप कपी हनी की की कीपी कीफी कक कक बनी कीकी की की कीपी बीवी फीसी की की कीनह कक कीपी वीनी पीने वन कीपी कप फीपी वी करी *#
आयुष्मन् । उन वीर प्रभु ने, वार्त परीपह वतलाये।
सुन जान जिन्हे भिक्षुक भिक्षामे, पाकर कभी न॒ धवराये ॥१॥
कहो कौन बारईस परीपह्, वीर प्रभु ने बतलाये।
जो सुन जान विजित परिचित, कर भिक्षु कभी न घवबराये॥२॥
ये है वे वाईस परीषह्, प्रभु ने जो बतलाये है।
जो भुन जान विजित परिचित, कर भिक्षु नही धघबरये है॥३॥
प्रथमक्षुधा ओौर तृष्णा दूसरा, जो कि कण्ठ-शोषण करता)
शीत उष्ण ओौर दश-मशक का, पीडन मन विचलित करता ॥
अचेल अरति स्त्रीचर्या, शय्या निषीधिका का परिषह् ।
आक्रोश याचना वध अलाभ, गौर स्पशं तृणो काहै दुस्सह ॥
है जट्ल परीषह अष्टादश, सत्कार पुरस्कृति सुखकर दै ।
प्रज्ञा प्रखर. अह लाती, दशंन अज्ञान भी दुखकर है ॥४॥
परीषहो के इस विभाग को, काश्यप ने है बतलाया।
क्रमवार उसे मैं कहता हूँ, सुन प्रभु ने जेसा फरमाया ॥४॥
क्षुधा व्याष्त होने पर तन मे, तपसी मुनि साहस दिखलावे ।
फल ॒ पूलादिक छेदन पाचन, स्वय करे ना करवावे ॥६॥
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