किसान सभा का संस्मरण | Kisan Sabha Ke Sansmarn

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Kisan Sabha Ke Sansmarn by स्वामी सहजानन्द सरस्वती - Swami Sahajananda Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ -पूवं सरकार ने समय-समय पर स्वँ कशकर लगान भी बदा दिया था] जव उसे न दे सकने के कारण किसानों की जमीन-जायदाद साहुकारों के हाथों में घड़ाधड़ जाने लगीं तो उनने विद्रोह शुरू क्रिये । लतः सरकारी ` जच कमिशन कायम हुआ और उसी की स्परिट पर दक्षिणी किसानों को सुविधाएँ देने का कानून बनाया रया । इस प्रकार स्पष्ट है कि सरकार और महाजनों से किसान इसीलिये त्रिगड़ पडे कि उनकी जमीनें छिनी जा रही थीं । कहा जाता है कि त्रम्नई प्रेसिडेन्सी में जर्मीदारी प्रथा है नहीं, वहाँ जमींदार हैं नहीं । रैयतवारी प्रथा के फलस्वरूप वहाँ किसान ही जमीन के मालिक हैं । मगर दस्प्रसल श्रच यह बात है नहीं । वहाँ भी साहुकार- जमींदार कायम हो गये हैं और असली किसान उनके गुलाम बन चुके हैं । यह. साहुकार-जमींदारी शुरू हुई थी १८४५ में ही, जञ किसानों की जमीनें महाजन कर्ज में छीनने लगे । किसानों के विद्रोह भी इसी छीना- सपरी को रोकने के लिये होते रहे । त्राज तो रैयतवारी इलाके का किसान इसी के चलते जमींदारी प्रान्तों के किसानों से भी ज्यादा दुखिया है |. क्योंकि उसे कोई हक हासिल नदीं है, जब्र कि जमींदारी इलाके वार्लो ने लडते-लङते बहुत कुछ हक हासिल किया है । इसीलिये दक्षिणी विद्रोह के जाँच कमिशन की रिपोर्ट में मिस्टर आकलैरड कौलबिन ने लिखा है कि “तथा कथित रैयतवारी प्रथा में घीरे-घीरे ऐसा हो रहा है कि रेयत टेनेन्ट हो गये हैं श्रौर मारवाड़ी (साहुकार) जमींदार (सालिक) । यह तो जमींदारी प्रथा ही है। फर्क इतना ही है कि उत्तरी भारत की जमींदारी प्रथारमेः किसानों की रक्षा के लिये जो बातें कानुमेंन में रखो गयी हैं वे एक भी यहाँ नहीं हैं | मालिक गैर जवाबदेह हैं श्र किसान का कोई बचाव दे नहीं | '. कलतः रैयतवारी न. होकर यदद तो मारवाड़ी (साहुकारी) प्रथा दोने जाः रही हैः का > ` ५ तणतलः 86-एभट्त दक 8 प 88670 16 18 ह पवप्थ्‌- क- 60 पष्ठ ४० (08, 9091 ४06 1 एण 18 ४06 ४८०२०८४ & पत्‌




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