अवध की अनमोल मणि गणिनी ज्ञानमती | Avadh Ki Anamol Mani Ganini Gyanamati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अवध की अनमोल मणि मणिनौ क्षानमती : ७
से सहनं करना तो उन्होंने जन्म से ही सीख लिया था क्योंकि अपने दो
वर्षोय भाई रवीन्द्र को जो उनके बिना सोता ही नहीं था जीजी की घोती
पकड़कर, अंगूठा चूसकर ही जिसकी सोने की आदत थी उसे किस निर्ममता
पूवक छोडकर आह थीं । जब छोटा भैय्या चारपाई पर सो ही रहा था
इन्होने अपनी धोती धीरे से खींचकर उसके पास दूसरा कपड़ा रख दिया
जिसे जीजी की धोती समझकर वहू चूसता रहा और निद्रा के हिलोरे
लेता रहा । उस मासुम को हमेशा के लिए छोड़ते हुए एक आँसु भी तो
इनकी आँखों में नहीं आया था । २२ दिन की बहन मालती को शायद
बाह्य स्तेहवश माँ से लेकर थोड़ा-सा प्यार किया भौर भाईयों के राखी
बेंधवाई चूंकि रक्षा बन्धन का पावन दिवस था । फिर चल दी थीं
बाराबंकी की ओर देशभुषण महाराज को अपना पाठ सुनाने । बया किसी
को उस दिन यह पता भी चल सका था कि मेरी बेटी, मेरी बहना, मेरी
पोती और मेरी भतीजी अब कभी हमें माँ, भाई, दादी, चाचा आदि कहने
इस घर में आएगी ही नहीं ।
उस १८ बर्ष प्राचीन जन्मजात वियोग के समक्ष दो बर्षों से प्राप्त
गुरु सालिध्य का वियोग तो शायद कुछ भी नहीं होगा। हो भी तो
वीरमती जी का वैरागी हृदय उसे कब स्थान देने वाला था उसे तो
अपनी मंजिल पर पहुँचना जो था ।
एक दिन सुना, “चारित्र चक्रवर्ती श्री शान्तिसरागर महाराज
कुन्थलगिरि पर्वत पर यम सल्लेखना ले रहे हैं तब ये आतुर होकर गुरु
आज्ञापूबवंक क्षुल्लिका विशालमती जी के साथ उस जीवन्त तीथं के दर्शनाथ
निकल पड़ीं और दक्षिण भारत के 'नीरा' प्राम में पहुँचकर युग प्रमुख
भाचायेश्री के प्रथम दर्शन किये |
क्षुल्लिका विशालमत्ती जी से इनका परिचय सुनकर वे करुणा के
सागर आाचायेंश्री बहुत प्रसन्न हुए भर “उत्तर की अम्मा' कहकर इन्हें
कुछ लघु सम्बोधन प्रदान किए । क्षुल्लिका वीरमती जी तो मानो यहाँ
साक्षातु तीथेंड्ूर भगवान् महावीर को छत्रछाया पाकर कताथ ही हो
गई थीं । बार-बार गुरुदेव को पदरज मस्तक पर चढ़ाती हुई उनकी गुरु
भक्ति अस्तहूदय की पावनता दर्शा रहो थी । कुछ देर की सुक भक्ति के
पश्चात् वेदना की शन्दावलियां फुटती है जो गुदवयं से चिरकालोन भव
श्रमण कथा कट् देना चाहती हँ किन्तु वीरमती जी उन्हं अपने एक वाक्य
में समेटकर व्यक्त करती हैं--
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