विवेकानन्दजी के संग में | Vivekanand Ji Ke Sang Men
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
518
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रहे है--अह्ान छा आदि व अन्त--इस विषय में शास्प्रीक्ति-ण
अश्ान प्रवाद के रूप में नित्य जैसा लगता है, परम्तु उसका अस्त
होता है--समस्त म्रग्याण्ड श्रप्न में अप्वरत दो रद दै-- जिस पदले
कमौ नदरी देखा, उसे$ सम्बन्ध मे भष्वात होता ह या नदी--
अद्मतत्व का स्वाद गूंगे के स्वाद जैता है ( मूडास्वादनवह् } । २१.
द्वितीय खण्ड
काल-१८९८ से १९०२ ईस्वी ।
परिच्छेद २३
. स्थान--चेठू मठ ( निर्माण के समय ) । वर्-१८९८ ईस्वी ।
विधय--मारत की उच्नति का उपाय क्या है १--दुसरों के लिए कमें
का अनुष या कमयोग! “ २.३.
परिच्छेद २४ ध
स्यान-गेलुड मठ ( निर्माण के समय | । व्वै-१८९८ ईस्वी ।
विपय--कषानयोग ष निर्विकल्प समाधि- सभी लोग एक दिन गरघ्वस्ु
को प्राप्त करेंगे । ४
परिच्छद् ५५
+ स्थान--बेदुड मठ ( निमोण के समय ) ।
विपय--द कान व घुद्धा भक्ति एक दै--पूरा्रह न होने पर प्रेम की
अनुभूति असम्मव है-यथा ज्ञान और मक्ति जब तक प्राप्त न
हों, तमी तक विवाद दै---घर्मराज्य में बतमान मारत में किस प्रकार
अनुष्ठान करना उचित ई--श्रीरामचनदर, मद्वीर् ठया गीतकार
श्रीकृष्ण की.पूजा का प्रचठन करना आदश्यक ईै--अवतारी
मुदम ॐ आत्रिमावि का कार ओर श्रीरामङृम्ग देव का मादाय । २५
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