ब्रह्मविज्ञान | Brahamavigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
470
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. मधुसूदन कौल - Pt. Madhusudan Kaul
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थे ब्रहाविज्ञान क
खणणणणणणणण्ण्णणणणफा्ण्णणणणफ्ा्ाजणणाणफ्रा्््रण््छााकाा राणा कफ्राण्फ्रणण्््रणण्रणजाफ्जण्््राम्णणणण्णणण्णणणणणणणणणण्ण,
प्रेसीडेन्ट नियुक्त कर दिया जिसमे दीवानी तथा फौजदारी विभाग का कार्य इन्होने कई वपं तक बड़े न्याय
निपुणता से किया जिससे पब्लिक बडी परितुप्ट रही श्रौर उस अझरसे मे जो जो युरोपियन आफिंसर बदल
कर प्राये वे सभी इनके कार्यं से परम सतुष्ट रहै भरौर इसके लिये उन्होने लिखित प्रमाण पत्र भी इन्हे
दिये हैं साथ ही जब वद्दा बहुत से लाईसेस वापस लिये जाकर कमी की जा रही थी उस समय इनको
सम्पण भारतवर्षं के लिये दुनाली भ्रग्रेन वन्दरुक का ला्ईसेस देकर विहार गवनमेन्ट ने इन्दं राजभक्त रूप
से सम्मानित किया था ।
पं० प्रयुम्नजी श्रपने पिता के समक्ष वर्त मान श्रीमाद् अलवर महाराज श्री १०८ थी तेजसिहजी
के राज्य सिहासनारोहण के अवसर से ही उनके वडे कृपापात्र तथा पूरं विष्वास पात्र होकर उनके
झात्मीय परिजनों मे सम्मानित हुए श्रौर उनके पास ही रहा करते थे । बे धामिक सभी कार्य इनके परा-
मर्थावुसार करते भ्ौर समय समय पर अन्य विषयों पर भी परामर्श लिया करते थे, साथ ही शख्र तथा
अश्वके कायंमेभी सुयोग्य होने के कारण इन्हे महाराज ने श्रपना ए० डी० सी० नियुक्त कर आखेट
( शिकार ) भादि में भी भ्रपने साथ रखते थे ।
पिता के भ्रस्वस्थ होते ही प० प्रद्युम्नजी को जयपुर भ्रा जाना पडा । वतेमान धीमान् महाराजा
जयपुर ने इनके पिताजी की जीविका इनको यथावत् प्रदान कर दी । श्नीमानू महाराज भ्रलवर कौ प्रण
जी मँ पुरं मक्ति भौर उनके पुत्र पं० प्र्युम्नजी पर पूववत् श्रतुल कृपा है श्रौर श्रीमान् पण्डितजी की इन
महान् तियो से पूणं परिचित है श्रत श्रीमान् का इस ग्रथ प्रकाशन कायं मे पूरणं सहयोग है।
प० प्रद्युम्नजी ने श्रपने पिता के भ्रन्तिम इच्छा ग्रथ प्रकाशन की उनके समक्ष प्रतिज्ञा कर उन्हें
परितुष्ट किया था उस प्रतिज्ञा कै भ्नुसार इस कायं में प्राणपण से जुटे हुए हैं । इन तीन वर्षो मे भ्रापने
६-७ ग्रन्थ प्रकाशित कर डाले है भ्रौर करई विभिन्न प्रेसो मे मुद्रणार्थं दिये जा चुके हैं, साथ ही श्रागे कार्ये-
क्रम जारी कर रखा है ।
जो कुछ सम्पत्ति पूज्य पण्डितजी ने छोडी है उसे ये एकमात्र ग्रव्थ प्रकाशन मे ही लगा रहे है,
भ्रौर तो क्था श्रापका यहा तक संकल्प है कि यदि द्रव्य का झभाव होगा तो मकान श्रादि बेच कर इस
काये को यथा सम्भव सम्पन्न करेंगे । किन्तु प्रश्न यह है कि क्या देश मे गुणग्राहकता का इतना प्रभाव
हो गया है कि वह ऐसा होने देगा ? इसका उत्तर भविष्य देगा ।
वेवज्ञमाविष्छृतदिव्यर्शाक्त लोकेषु गीतार्जुनकीतिमच्येम् ।
भरदयुम्नतातं सम्दशिनं च गुरं भने भोमधुसुदनार्यम् ॥।
( प० ब्रह्मदत्त शर्मा शास्ती भ्राूवंदाचायं सम्पदित, सस्छृतरत्नाकर के बेदाडू, से उद्धृत )
॥ इति ॥
[ १५ 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...