मानव से भगवन बनो | Manav Se Bhagwan Bano

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Manav Se Bhagwan Bano by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
3 महा -, नर. ना २ सौर शु च स सा {२ म ~ र हा ४ ८ गुदं \17 १7 यः ५ इ 1 होना 1 श ड द क , 1; पुन ६ ग्य पुकार ८ नर 1 ११११) हू हू सु ग्रपभा से उन हो सम ते ममि त ८1 साभाधिक के ? प्राना पंचाघापि . मतानुस्‍्जवनु पस्तापनस्मूत्ते । कायवाइ_ मनसा दुप्ट प्रति सान्यान्यनावरस 0 (सागार वर्माघत प्र० ४ ये वि हर भ्रय- उस नामायित सिताय ह ५ ्रतिसार थार चाहिये, जैस - १. स्मृत्युनुपस्थापन--स्मरण नहीं राना, निन ' एकाग्रता का नहीं होना । में सामायिक करूं या नहीं * ग्रथवा मैन सामायिक कीदै, प्रथवा नही, उस प्रकार विकल्प करना । जव प्रचल प्रालम्य दोना नय यह्‌ प्रति का दोप लगता दै । मोक्ष मागमे जितने ग्रनुष्ठान दे, उः स्मरण रखना सवसे पहिले मुख्य है । बिना स्मरण क क क्रिया फलीभूत नहीं होती है । २. कायदु प्रणिघान -कायकी पापरूप प्रवत्ति को न रोकना । हाथ-पर प्रादि शरीरके ग्रवयवोको नित्चलनं रखना, श्रयवा पाप रूप ससारी क्रिया मे लगना 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now