मानव से भगवन बनो | Manav Se Bhagwan Bano
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1012 KB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)3 महा -, नर. ना २
सौर शु च स सा
{२ म ~ र हा ४
८ गुदं \17 १7 यः ५ इ 1
होना 1
श
ड द क , 1; पुन ६
ग्य पुकार ८ नर 1 ११११) हू हू सु
ग्रपभा से उन हो सम ते ममि त ८1
साभाधिक के ? प्राना
पंचाघापि . मतानुस््जवनु पस्तापनस्मूत्ते ।
कायवाइ_ मनसा दुप्ट प्रति सान्यान्यनावरस 0
(सागार वर्माघत प्र० ४ ये वि हर
भ्रय- उस नामायित सिताय ह ५ ्रतिसार थार
चाहिये, जैस -
१. स्मृत्युनुपस्थापन--स्मरण नहीं राना, निन '
एकाग्रता का नहीं होना । में सामायिक करूं या नहीं *
ग्रथवा मैन सामायिक कीदै, प्रथवा नही, उस प्रकार
विकल्प करना । जव प्रचल प्रालम्य दोना नय यह् प्रति
का दोप लगता दै । मोक्ष मागमे जितने ग्रनुष्ठान दे, उः
स्मरण रखना सवसे पहिले मुख्य है । बिना स्मरण क क
क्रिया फलीभूत नहीं होती है ।
२. कायदु प्रणिघान -कायकी पापरूप प्रवत्ति को न
रोकना । हाथ-पर प्रादि शरीरके ग्रवयवोको नित्चलनं
रखना, श्रयवा पाप रूप ससारी क्रिया मे लगना 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...