श्री हरिश्चंद्र कला | Sri Harischandra Kala

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Sri Harischandra Kala by रामप्रसाद - Ramprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विदेशी ( {2670-{7त187 (06 ) राजा हुए। इन कं ध जन = ड्‌ © शाक्य सिह को इण उद्र स वर्त हप थ । (| शर्त ९ न एसी “नया डे कि राजतरगियों के हिसाब से शाकय। सह इस से स्पष्ट दाता है के ¦ {सा पी बरस हए । दसी समय भ नागाज्ैन नामक को हुए पचाल पकः पि अरि मन्यु के समय मे चन्द्राचायं सिद्ध भी हुआ । इन के पाई ग्रमिमन्यु क सम, दुसरे ने व्याकरखं के महामाष्य का प्रचार किया पर पक दुसर =च ते बोद्धा को जी काल पिं 1मेंहिरकुल नामक चन्द्रदेव ने बोद्धा को जाता । ङ ! निदिरकृल ना। के +$ (ग कक राजा इुआ । इस के समय क एक घटना बिचारने के योग्य हे । बह यह कि इस कौ रानी सिहल का बना रेशम। कपड़ा पहने > ~स पर वहां के राजा के पर को सानहला छाप था । इस्त पर था उस ५ न [9२ ९ ९ 1 गल्ला । कश्मीर के राजा ने वडा कधि [कय श्रीर लङा जी 9 [5 (न कै म परमं बरृद्रहि छाय दनि मार मार“ पुकारि ¶ । सुफलक सुवन धत धरि निज अहि सरिस वान प्रहार । म्‌ कामिः दसमन विसिख पहि मध्य दीनो रिक ॥ ६५ ॥ भ न्रे, गोनई तव गलत भयो तूञ्वान प्रगट लात ₹ । न न क्यो धर्म वृद्ध कहात है आचरन यह अधिकात्‌ हे । विचारि ५. ह = (२ ये एक बात विचारि करि संदेह मेरो जत है। गन धर्म वृद्धन को धरे चरति सिथिल तेरो गात्र रै ॥ ६६ ॥ कि, ॐ. न जटृवीर अन बोलत मगरो वरप संच तोहि बति कहें | ष न =, कर 3० हम आम वृद्ध, कहात हैं पे करम वृद्ध नहीं अरे । अंग धर्म्म दूख को नाम है सो दृद्ध बहु दिन को भयो | गोनरद तू रद रहित बूढ़े पतिहिं क्यों चाहि नयो ॥ ६७ ॥ दमि कचन सुनि पफलक सुवन ॐ कातमीरी कोपि कै । बह बरनि आयुध वारिपर समू दियो पर रथ लोपि के | तिमि धमं द्राद्धि वजाय चैनु सर त्याग कीने चोपि के । गोनद सर उड़ायके गरव्यों विजय पन रोपि के ॥। ६८ ॥




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