श्री हरिश्चंद्र कला | Sri Harischandra Kala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
427
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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क्यो धर्म वृद्ध कहात है आचरन यह अधिकात् हे ।
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ये एक बात विचारि करि संदेह मेरो जत है।
गन धर्म वृद्धन को धरे चरति सिथिल तेरो गात्र रै ॥ ६६ ॥
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जटृवीर अन बोलत मगरो वरप संच तोहि बति कहें |
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हम आम वृद्ध, कहात हैं पे करम वृद्ध नहीं अरे ।
अंग धर्म्म दूख को नाम है सो दृद्ध बहु दिन को भयो |
गोनरद तू रद रहित बूढ़े पतिहिं क्यों चाहि नयो ॥ ६७ ॥
दमि कचन सुनि पफलक सुवन ॐ कातमीरी कोपि कै ।
बह बरनि आयुध वारिपर समू दियो पर रथ लोपि के |
तिमि धमं द्राद्धि वजाय चैनु सर त्याग कीने चोपि के ।
गोनद सर उड़ायके गरव्यों विजय पन रोपि के ॥। ६८ ॥
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