हिन्दू देव परिवार का विकास | Hindu Dev Parivaar Ka Vikas

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Hindu Dev Parivaar Ka Vikas  by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(1 हे. ) ओर विक्षेष उपजाति के ये इसका कोई प्रमाण नही है । परन्तु निश्चय ही बे ऐसे लोग थे जिनको भौगोलिक कारणों ने एक साथ डाल दिया था । इस प्रकार उनमें कुछ विशेष विष्वासों का, रहन सहन के प्रकारों का, उदय हुआ था । उनमें एक विशेष प्रकार की सस्कृति का जन्म हुआ था और विशेष प्रकार की भाषा भी बोली जाने लगी थी । वस्तुत; जिसे आय्यों का इतिहास कहते हैं वह उस विशेष प्रकार की सस्कृति का इतिहास है जिनका उन लोगों से सम्बन्ध था जो अपने को जाय्यं कहते थे । एक बात ओर ध्यान मे रखने की है । जैने आय्य संस्कृति का चर्चा किया है । परन्तु सभी भ्यो कौ संस्कृति एक समान थी एेसा नही माना जा सकता । अलग अलग समुदाय थे, वे अलग अलग समयों मे अलग अलग दिशाओ में गये । इसलिए उनकी सस्कृतियों में थोड़ा बहुत अन्तर आ जाना स्वाभाविक था । इसके अतिरिक्त सभी आय्यं बस्तियो मे नही रहते थे । कुछ ऐसे भी थे जिनको पुरानी किताबों में ब्रात्य कहा गया है। ये लोग नगरवासी आर्यों से भिन्न प्रकार का वस्त्र पहिनिते थे, खेती बारी नही करते ये, मुख्य रूप से पशु पालन और कभी कभी लूटपाट का भी व्यवसाय करते थे । एक स्थान पर टिक कर रहते भी नही थे । इनकी बोली भी बस्तियो मे रहने वारो की अपेक्षा असस्कृत हुमा करती थी । पुरानी पुस्तकों में इसके उदाहरण भी मिलते है, जैसे अरयः (शत्रुओ) के लिए अलव: बोलना । क्रमशः ये खोग भी बस्तियो मे रहने वालो मे आ मिले । परन्तु बहुत दिनो तक पृथक्‌ रहने के कारण इनमें जो विशेषताये आ गई होगी उनका प्रभाव मूल आय्ये सस्कृति पर निश्चय ही पड़ा होगा । मैं आशा करता हूँ कि इस विवेचन से यह बात स्पष्ट हो गई होगी कि हम आय्यं शब्द का व्यवहार किस अर्थ मे करते है। बहुत प्राचीन काल मे कुछ लोग थे जो अपने को आर्य कहते थे । उनमें शरीर आदि की दृष्टि से कोई ऐसी विशेषता नहीं थी जो उनको दूसरे मनुष्यों से पृथक्‌ करती । परन्तु उनमें एक विशेष प्रकार की संस्कृति का उदय हुआ था । 'सस्कृति' शब्द की परिभाषा करना बहुत कठिन है । परन्तु यो कह सक्ते है कि किसी समुदाय का जीवन सम्बन्धी समस्याओं के प्रति जो विशेष दुष्टि- कोण होता हैं उसे उस समुदाय की संस्कृति या संस्कृति का सार कह सकते




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