रत्नाकर शतक | Ratnakar Shatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहते हैं । झाप प्रंपने एक-एक क्षण का ध्यान-अध्ययन में जिस प्रकार सदुपयोग कसते है, वह्‌ वास्तव मे हम संसारीजनों के लिये प्रेरणाप्रद है। जैन मुनि की चर्या और झ्राचार-विचार वहुठ कठिन है । चातुर्मास के शतिरिक्त शेप समय उन्हे विहार करते रहना पडता है! विहार करते समय प्रन्य-अणयन जसा काये हो कहीं पाता ! अत ग्रन्य-प्रणयन और किसी विपय के गम्भीर अ्रघ्ययन का यदि कु सुथोग मिल सक्ता है, तो वह्‌ कवले चातरुमासमे ही } वसे ठो चातुर्मास मे मौ मुनिर्योका वहत सा समय तो सामामिक, प्रतिक्रमण, घाहार, प्रवचन, व्यान, ददा नाथें श्राये व्यक्तियों को सवोघन, समय-समय पर होने वाले केशसुचन आदि के आयोजन भर विभिन्‍न घार्मिक समारोहो में ही चला जाता है । प्रस्य रचना के लिये जिस गम्भीर अव्ययन, चिन्तन, मनन श्रौर अवकाश की आवश्यकता है, वह मुनियो को कठिंनता से ही प्राप्त हो पाता है। उन मुनियो के लिये ऐसे महत्वपूर्ण कार्य के लिये समय निकाल सेना तो श्रौर भी कठिन है, जिनका जनता पर पर्याप्त प्रभाव है । किन्तु झाचायं देशमूपणजी इसके अपवाद हैं । थे जनता की श्रद्धा के केन्द्र हैं । जहाँ जाते हैं, जहाँ ठहरते हैँ, जनता की श्रद्धा वहाँ उमड पड़ती है भर श्राचायं महाराज के निकट जनता का मेला सा लग जाता है । उसमें गन्थ-निर्माण के लिये समय निकालना कितना कठिन हैं, यहूं समभना कठिन नही है । इस बयं झाचार्य महाराज का चातुर्मास दिल्‍ली में ला० लच्छमल कानजी की धर्मशाला ङ्‌ चा चुलाकवेगम (दरीवाकलां) में हुझा 1 मु्ति- घर्मे के अनुकूल सभी श्रावस्यक क्रियाएं चलती रहती थी, समयन्तमय पर धामिक झायोजन होते रहते थे । इन व्यस्तताओं में भी आप स्वाध्याय और प्रन्थ-प्रणयन के सिंये पर्याप्त समय निकाल ही लेते थे । इच दिल्‍ली- चातुर्मास के अवसर पर आपके हारा श्रदूदित और संपादित रत्नाकर शतक अयम और द्िंतीय भाग, णमोकारमंत्र कल्प, उपदेश सारसग्रहू छटा माग, रयणसार, आदि कई ग्रन्थ अकाशित हो चुके हैं तथा घर्मामृत की विस्तृत (१३)




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