गाँधी जी के संस्मरण | Gandhiji Ke Sansmaran

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Gandhiji Ke Sansmaran by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रुप -र्दी कार थी बसुपाई गांदी थे संबाध्यस में गाएीजी की दिनषर्पा बहार में बोर दा पृप्टा बी पृप्यदातु शामरारी लिप लगी इसके लिए में उतर शामारी हू । इसी तरह एज से अधिक मुद्रवा मौर प्ररागग-सापाजों में मेरे अठरप आपात भर बारीरिया पो लटस करके बह गुस्तए् तैयार गर दी कमरे जिग लमा दार्ष सादर उन भवता थी ऋण स्वदार बता है । इस पुर्एत में दिप पय विद भौर गमोतमो ङ दिए थे जिर्सशर सी हू । पिश्तु शाया आर स्याइरस लाए अपने आपस और अकम्पत दे बारप एस पुस्तत मे अदच भर बनती याद दे जो पाए बौर अटियाँ एफ गएी है इतर हि थे दारए दे निएट एबायाएी हू । यामो प्रान्न्‌




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