हिंदी कविता का विकास | Hindi Kavita Ka Vikash
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १९ )
फ कवियों म रहस्य-भावना कौ प्र्ृत्ति को जाग्रत किया । शंग्रेजी, बंगला
घ्ौर संस्कृत फाव्यों के श्रपुलीलन ने भी हिन्द में छायावादी युग कीं
श्रवतारणा स सहयोग दिया । बाह्याथे निरूपक कविताभ्रों के स्थान पर
प्रात्माुभूति-षदक कविताश्रो का शुभारंभ हुमा । अरब कविता का बहिरंग
नहीं, श्रन्तरंग सज्जित किया जाने लगा । भाषा में सरसता मरौर कोमलता
कै गुणो का समावेश हुश्रा 1 भ्रात्मातुमूति-परक, कल्पना-त्रसूत तथा भ्राकषेक
तैली युक्त कविताएं लिखी जाने लगौ । चछायावादी ली मे लाक्षणिकता
चित्र मया तथा व्यंजना की प्रधानता थी । छायावादी कवियों ने प्रकृति
के अनत्यन्त सजीव एवं स्वाभाविक चिन्न अर्ति किये। इन कवियों ने हिन्दी
काव्य . को पथी भावनाएं, नई भाषा, नये छंद, और नये श्रलंकार दिये ।
छायावाद वस्तुतः काव्य की भावे तथा कला संबंधी पुरानी मान्यताश्रों के प्रति
एक प्रबल विद्रोह था 1 छायावाद के भावपक्च में रहस्य भावना की प्रदत्त
का एक देप्ठतच सत्ता के रूप में तथा मानव की अन्तद्ध त्तियों का सुक्ष्म चित्रण
हुश्रा है । सौव्दय, प्रेम ओर श्यृगार के भव्यचित्र इस युग कै कविथों ने
प्रस्तुत किये । जयशंकर प्रसाद , सूयेकःन्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन
पेत, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, श्रादि इस युग के प्रतिनिधि कवि
हैं। 'कासायदी' जेसा महाकाव्य इसी युग में रचा गया जो हिन्दी काव्य की
श्रेष्ठतम छत्ि फे रूप मे जाना जाता है।
प्रगलिवादी युग--इस युग का ब्राविर्भाव छायावादी-युग की प्रतिक्रिया
स्वरूप हुन्ना । छायावादी कवि वास्तविकता को छोड़ कर श्रत्यधिक कल्पना
एवं भावुकता कौ दुनिया में वहं चले तो प्रगतिवादी कवियों ने जीवन की
विषमताश्रों शौर समस्याओं की ्रोर ध्यान श्रारकषित किया । साहित्य में
किसानों श्रौद मजदूरों के उत्पीड़ित जीवन के चित्र झंकित किये जाने लगे ।
काव्य का स्वर व्यक्तिवादी न.रह कर सामाजिक हो गया । इस युग की कविता
पर सावसंवाद एवं रूसी साहित्य का बहुत प्रभाव पड़ा है । प्रगतिवादी काव्य
यथाथं का समर्थक है । वेह कल्पना लोक के बजाय वास्तंविक जगत को ही
सत्य मानता है । प्रग तिवाद, कला को केवल कला के लिये नहीं श्रपितु जीवन
के लिये मानता है । पूंजीवादी-शोषण का विरोध श्रौर वर्गहीन समाज की
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