हिंदी पद संग्रह भाग - १ | Hindi Pad Sangrah Bhag-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) श्रादिनाथ के स्तवनकेन्पपे लिखा हृश्रा इनका एक पट बहूठ सुन्दर एव परिप्कृत भाषा में दे । इसी तरह १६ वीं शतान्दी में दोने वाले छीइल, पूनो, चूचराज, श्रादि कवियों के पट भी नलगनीय हैं । प्र्तुत सप्र मे मने सबत्‌ १६०० से होकर १६०० सक हीने वाले कवियों के पदों का सम्रद् किया है । वेसे तो इन ३०० गगों में सेकदों दी जैन कवि हुये हू जिन्दंने दिन्दी में पट सादित्य लिं।ा है | श्रमी इसने राजस्थान के शास्त्र मगडारों की प्र थ सूची चतुर्थ भाग * में जिन अर था की सूची दी है उनमें २४० से भी श्रधिक जैन कवियों के पद उपलन्ध हुये हैं किन्तु पट स्र में निन कवियों के पर्दों का सकलन किया गया हे वे श्रपने युग के प्रति निधि कवि दे । इन कवियों ते देश में श्राध्यात्मिक एव सादित्यिक चेतना को नाएत किया या श्रीर उसके प्रचार म श्रपना पूरा योग दिया था | <बी शतान्दो में श्रौर इसके पश्चात्‌ हिन्दी जैन मादित्य में श्रध्यासमव।द ष्ीलजो लहर टौड गयी थी स लर फे प्रमुख परमर्तफ कविवर रूपचन्द्‌ एव बनारखीदास । इन दोनों के साहित्य ने स्मान में जादू का कार्य क्षिया । नके पश्चात्‌ होने बलि श्रधिकाश कविर्यो ने श्र्यास एव मक्त चारा में श्रपने पद सादित्य को. प्रवाहित किया । भक्ति एव श्रष्यात्म का यद्द क्रम १६वीं शताब्दी तक उसी रूप में श्र॑यवा कुछ २ रूप परिवर्तन के साथ चलता रहा । 4 3 “+ आरी महाषोरजी चेत्र के जैन सारित्य शोष सस्थान की शरोर से प्रकाशित




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