परलोक और पुनर्जन्माक | Parlok Aur Punarjanm
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43.21 MB
कुल पष्ठ :
649
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुद्च्यते । पूर्णस्थ पूर्णणादाय पूर्णभिनावशिष्तते !)
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मुण्चलू सूणन् संखरयंश्र चिन्तयनू नामानि रूपाणि च मज्जलानि है।
क्रियासु यस्त्वचरणारविन्दयोराविश्चेता न. करयते ॥
| हि गोरखपुर, सौर माघ २०२५, जनवरी १९३५ 1
कण संख्या ५०६
जिन सिर
सवंप्रकादाक ज्योतिमय ]
देते सूय-सोम-मण्डठको: उज्ज्वल भ्ास ।
अष्ट-कमलद्लपर वे नित्य स्थित हैं नारायण श्रीवास ॥
जिनके सोम-येममें अगणित हैं घ्रह्माण्ड सित्य अव्यक्त 1
जो हैं कोटि-कोटि न्रह्माण्डॉके अनन्त रूपोंस व्यक्त ॥
. लीलामय वे लीलाकारण धरे विचित्र विविध वह रूप ॥
दु्दान हैं दे रददे चतुसुंज विष्णु वही सब भाँति अनुप ॥
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