जिन सहस्त्रनाम | Jina Sahasranam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
293
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
श्री मूलाचासमं स्तव या स्तवनके छह मेद बतलाये गये हँ- नामस्तवन, स्थापनास्तवन, द्व्यस्तवन,
छेत्ररतबन, कालस्तबन श्रौर भावस्तवन । नामस्तवनकी व्याख्या टीकाकार वदुनन्दि श्राचा्यने इस
प्रकारकी है :--
'चत॒र्विशतितीथंकराखां .. यथार्थानुगतैश्टोसरसइसससंख्येनाममि: रतवनं चनुविंशतिनामस्तवः' ।
( मृलाचार, ७, ४१ टीका )
_ झर्थात् चौबीस तीर्थकरोंके वास्तविक श्रर्थवाले एक हजार श्राठ नामोंसि स्तवन करनेको नामस्तव
कहते हैं ।
मूलाचारके ही झाधार पर पं० श्राशाघरजीने भी अपने झनगारधर्मासूतके श्राठवें झध्यायमें स्तवनके
ये ही उपयुक्तं छह मेद बताये है श्रौर नामरतवका स्वरूप इस प्रकार कषा है :--
्टोत्तरसह लस्य नान्नामन्व्थंमहंताम् । वीरान्तानां निरुक्तं यत्सोऽन्र नामस्तवो मतः ॥ ३९ ॥
श्रथांत् दृष्रभादि वीयन्त तीर्थकर परमदेवका एक इजार झाठ सार्थक नामोंसे तवन करना से नाम-
स्तवन है ।
जनवाड्पयका परिशीलन करनेसे षिदित होता हे फि यह एक श्नादिकालीन परम्परा चली झ्ाती
हे कि प्रः+कं त।थकरके केवल श्ञान होने पर इनद्रके श्रादेशसे कुबेर श्राकर मगवानके खमवसरण (समामंडप)
की स्वना करता है श्र देव, मनुष्य तथा पशु-पद् श्रादि तियेच तीर्थकर मगवानका उपदेश सुननेके लिए
पहुचत हूं । उस समय सदाके नियमानुसार इन्द्र भी श्राकर भगवानकी बन्दना करता है श्रीर एक हजार
श्राठ नामोसे उनकी स्तुति करता है । श्राचायं जिनसेनने श्रपने मददापुराणुमं इन्दके द्वारा भगवान ऋषभ-
नाथकी इसी प्रकारसे स्तुति कराई है ।
एक हजार आढ नाम ही क्यों ?
तीथकर्तकी श्रष्टोत्तर सदृलनामसे ही स्तुति क्यो की जाती है, इससे कम या झधिक नामोसे क्यों नहीं
की जाती; यहु एक जटिल प्रश्न है श्रौर इसका उत्तर देना श्राखान नदीं रै । शाघ्लोके श्रालोड्न करने पर
भी इसका सीधा कोई समुचित उत्तर नहीं मिलता है । फिर भी जो कुछ श्राधार मिलता दे उसके ऊपरसे
यु श्रवश्य कददा जा सकता है कि तीर्थकरोंके शरीर जो १००८ लक्षण श्रौर व्यञ्जन हेते ईं, जो कि खामु-
दिक शाखे श्नुसार शरीरके शुभ चिन्ह या सुलचण माने गये हैं, वे ही सम्मवतः एक हजार श्राठ नामौसे
स्तुति करनेके श्राधार प्रतीत होते हैं । ( देखो श्राचायं जिनसेनके सहव्तनामका प्रथम नछोक ) ।
झन्य मतावलम्बियोंने भी अपने-श्रपने इष्टदेवकी स्तुति एक हजार नामोंसि की है श्रौीर इसके साक्षी
विष्णुसदसनाम, शिवसदसनाम, गणेशसदस्तनाम अम्बिकासइसनाम, गोपालसइसनाम झादि झनेक सदस-
नाम हैं शिवसदलनामकार शिवनीवे पररन कसे है :--
लव नामान्यनन्तानि सन्ति यद्यपि शद्कर । थापि सानि दिष्यानि न शायन्ते मयाऽधुना ॥ १६ ॥
प्रियाणि तव नामानि सर्वाशि शिव यद्यपि । तथापि कानि रम्याशि तेषु भियतमानि वै ॥ १७ ॥
[ शिवसक्तनाम ]
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