जिन सहस्त्रनाम | Jina Sahasranam

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Jina Sahasranam by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना श्री मूलाचासमं स्तव या स्तवनके छह मेद बतलाये गये हँ- नामस्तवन, स्थापनास्तवन, द्व्यस्तवन, छेत्ररतबन, कालस्तबन श्रौर भावस्तवन । नामस्तवनकी व्याख्या टीकाकार वदुनन्दि श्राचा्यने इस प्रकारकी है :-- 'चत॒र्विशतितीथंकराखां .. यथार्थानुगतैश्टोसरसइसससंख्येनाममि: रतवनं चनुविंशतिनामस्तवः' । ( मृलाचार, ७, ४१ टीका ) _ झर्थात्‌ चौबीस तीर्थकरोंके वास्तविक श्रर्थवाले एक हजार श्राठ नामोंसि स्तवन करनेको नामस्तव कहते हैं । मूलाचारके ही झाधार पर पं० श्राशाघरजीने भी अपने झनगारधर्मासूतके श्राठवें झध्यायमें स्तवनके ये ही उपयुक्तं छह मेद बताये है श्रौर नामरतवका स्वरूप इस प्रकार कषा है :-- ्टोत्तरसह लस्य नान्नामन्व्थंमहंताम्‌ । वीरान्तानां निरुक्तं यत्सोऽन्र नामस्तवो मतः ॥ ३९ ॥ श्रथांत्‌ दृष्रभादि वीयन्त तीर्थकर परमदेवका एक इजार झाठ सार्थक नामोंसे तवन करना से नाम- स्तवन है । जनवाड्पयका परिशीलन करनेसे षिदित होता हे फि यह एक श्नादिकालीन परम्परा चली झ्ाती हे कि प्रः+कं त।थकरके केवल श्ञान होने पर इनद्रके श्रादेशसे कुबेर श्राकर मगवानके खमवसरण (समामंडप) की स्वना करता है श्र देव, मनुष्य तथा पशु-पद्‌ श्रादि तियेच तीर्थकर मगवानका उपदेश सुननेके लिए पहुचत हूं । उस समय सदाके नियमानुसार इन्द्र भी श्राकर भगवानकी बन्दना करता है श्रीर एक हजार श्राठ नामोसे उनकी स्तुति करता है । श्राचायं जिनसेनने श्रपने मददापुराणुमं इन्दके द्वारा भगवान ऋषभ- नाथकी इसी प्रकारसे स्तुति कराई है । एक हजार आढ नाम ही क्यों ? तीथकर्तकी श्रष्टोत्तर सदृलनामसे ही स्तुति क्यो की जाती है, इससे कम या झधिक नामोसे क्यों नहीं की जाती; यहु एक जटिल प्रश्न है श्रौर इसका उत्तर देना श्राखान नदीं रै । शाघ्लोके श्रालोड्न करने पर भी इसका सीधा कोई समुचित उत्तर नहीं मिलता है । फिर भी जो कुछ श्राधार मिलता दे उसके ऊपरसे यु श्रवश्य कददा जा सकता है कि तीर्थकरोंके शरीर जो १००८ लक्षण श्रौर व्यञ्जन हेते ईं, जो कि खामु- दिक शाखे श्नुसार शरीरके शुभ चिन्ह या सुलचण माने गये हैं, वे ही सम्मवतः एक हजार श्राठ नामौसे स्तुति करनेके श्राधार प्रतीत होते हैं । ( देखो श्राचायं जिनसेनके सहव्तनामका प्रथम नछोक ) । झन्य मतावलम्बियोंने भी अपने-श्रपने इष्टदेवकी स्तुति एक हजार नामोंसि की है श्रौीर इसके साक्षी विष्णुसदसनाम, शिवसदसनाम, गणेशसदस्तनाम अम्बिकासइसनाम, गोपालसइसनाम झादि झनेक सदस- नाम हैं शिवसदलनामकार शिवनीवे पररन कसे है :-- लव नामान्यनन्तानि सन्ति यद्यपि शद्कर । थापि सानि दिष्यानि न शायन्ते मयाऽधुना ॥ १६ ॥ प्रियाणि तव नामानि सर्वाशि शिव यद्यपि । तथापि कानि रम्याशि तेषु भियतमानि वै ॥ १७ ॥ [ शिवसक्तनाम ]




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