अष्टादशस्मृति | Ashtadshasamariti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
508
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्मृति: १ 3 भाषाटीकासमेता: । (३)
शद्रोकी, बाक्षणोकी सेवा करना यही तवस्या ओर हिर्पकार्य उनकी विका है ॥ १५ ॥
मैंने यह धर्म का, ब्राह्मण, श्चत्रिय, वैश्य ओर शुद्र यह चारों वणे इस ध्मके तुखार
चलनेपर इख काठ बहुतसा सन्मान प्राप्तकर परल्ोकमे श्रेष्ठ गतिको पावे ॥। १६ ॥
ये भ्यपेताः स्वधम परधर्मष्ववस्थिताः ॥
तेषां शस्तिकरो राा स्वगंलो$ महीयते ॥ १७ ॥
जो पूर्वोक्त जपने २ धर्मक व्यागक्र दूसरे धमेक। आश्रय कर्वे, राजा उनको दण्ड
दैकर स्वर्मका भागी दोताहि ।। १५ ॥
आत्मीये संस्थितो धर्मे शद्रोऽपि स्वगमर्लुते ॥
परधर्मो भवेच्याज्यः सुरूपपरदारवत ॥ १८ ॥
अपने धर्ममें स्थित होकर शूद भी स्वर्ग प्राप करतहें, दूसरोंका धर्म सुन्दरी पराई ख्रीकी
समान तजनेके योग्य है ॥ १८ ॥
; वध्यो राज्ञास वे शरद्रो जपहोमपरश्च यः ॥
` यतो राष्टस्य हंतासौ यथा वहैश्च वै जलम् ॥ १९ ॥
जप, हाम इत्यादि त्राह्यणोंके उचित कमम रत टोनेसे सुद्रका राजा वध केरे, कारण कि
जलधारा जिख प्रकारे अभिको.नष्ट करतीदै, उसी प्रकारसे यह जप होममे तत्पर हा सद्र
सम्पूणं राज्यका नारा करतादै ॥ १९ ॥
प्रतिग्रहोऽध्यापने च तथाऽविक्रेयविक्रयः ॥
याज्यं चतुभिरप्येतेः क्षत्रषिट्पतनं स्म्रृतम् ॥ २० ॥
दानटेना, पदाना, निषिद्ध -वस्तुका ग्वरीदना जौर वेचना वा यज्ञकराना इन चारों क्मोकि
करनेसे क्षत्रिय और वैद्य पतित होतिहे ॥ २० 1
सयः पतति मसिन लाक्षया लवणन च ॥
च्यहण डादो भवति श्राह्मणः क्षीरविक्रयी ॥ २१ ॥
जाहमण मांस, ठाग्व और पढे बेंचनसे तत्काल पतित होना ओर दृधके बेचनेसे
भी तीन दिनमें उुद्रकी समान होजाताहि ॥ २१ ॥
अब्रताश्वानघीयाना यत्र भेकष्यचरा द्रिजाः ॥ तंग्रामं दृडंयद्राना चौरभक्त-
ददंडवत् ॥ २२ ॥ दिद्द्धाज्पमविदांसो यषु राष्ट्रप भुंजत॥ ते 5घ्वनावष्टिमि-
च्छंति महद्दा जायते मयमू ॥ २३ ॥
ब्रत और जप्ययनस सन्य बाह्मण जिस माममे भिक्षा मांगकर जीवन धारण करते राजा
उस भ्रामको अर्थान् उस अ्रामके अत्रत् ओर निरभर त्राह्मणोंके पाउनेवाले नगरवासियोंको
चोरो मात देनेवालेके दं डक तुस्य ८ अर्थात् चौरकः पोपण करंनवाख्के दंडके तुल्य ) दंड
देवै ॥ २२॥ जिस राञ्यमे पडितोंके भोगनयोग्य वस्तुको मृखं भोगतिहें, वहाँ अनावष्टि वा
अन्य किसी श्रकारका महाभय उपस्थित होताहै ॥ २३ ॥
श दाहित: दासनसू ।. २ तेप राष्ट्रिय |
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