जय योद्धये | Jai Yodhaye

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Jai Yodhaye by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्3 पडता, चरी भारतवषं फी दूकानदारी ह । श्रापका दोष नदींदहे, दोष नो श्रम्रेचो का है कि आप जसे “देश-भक्तो” के श्रोर 'प्रमु-भक्तो” के होते हुए भी, भारतय्ष पर शासन करते रहने के लिए वढी भारी सेना का व्यय सदा फरत हैं । यदि श्रापकी दूकानदारी चलाते रहने मे वै योग दे सकें, तो श्राप श्रपने बेटे का राला फाटने से भी सकोच न करेंगे 1 में प्रयत्न करूंगा कि चिटिश सरकार को यह वात सुकादूः 1 इस देणसे नियो की वेना का यह पौचिवा-स्तम्भ प्राप लोगो के योग्य होगा ।-णाचद श्रापको देर हो रही होगी ? मंनजर कुछ लजा कर बोला, न्नी हाँ, देर तो हो रही है, पर क्या चोट प्यादा लगी है ?”? “प्यापका पुरम्कार जो है | ध्रम्रेज की चोट से तो श्राज ही चल सऊने से कठिनाई श्रचुभव हो रही है; थोड़े दिनो में ठीक हो जाएगी, किन्तु श्रपने दही देल नाद्‌ क्तो चोट कव श्रच्डौ होगी, कौन कह सकता ३1 द्या श्राप श्रपना वटर मेरे साथ मेन सकते टँ १ चला नदीं जाता, कीं रास्ते मे गिर गिरा पढ़ा तो ' जो श्राप कहेंगे, उसे दे दिया जाएगा 1» संनेजर ने कहा? “स्व पाप ही कहिए, दस रात को किसे जाने कै लिए कड? इसे दृकान वन्द करनी हे 1 “प्रु ही करदिषु मनेजरः साहव 1 धन्यचाद्‌ 1 नवनीत बाहर निक्ल पडा। वेटर जो स्वय सव ऊुदु देख रहा था, श्रागे वदृ क्र मैनेजर से वोला ~ * ““प्रपनी नौकरी ही तो रखेंगे ? लीजिए; में एेसे कसारे-खाने मे नदीं रहता ।-नेचारा युवक ।?? प्रोर वह नवनीत्त फ शरोर श्रागे बढा । मेनेजर ऊ डरा, कहीं यह चेटर दी पुलिस से सेद खोल ठे, तो चेटर को. लौटाता हुआ वोला-- “बस हतने ही मे पिघल गरु ? श्रे भाई, विजिनेस हे यह | ऐसे किस्से तो रोज होते हे यहो, किस-किस फा साय टोगे १ प्र जाश्रो पम्दारी द नाथ




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