प्रसाद का काव्य | Prasad Ka Kavya

Prasad Ka Kavya  by प्रेमशंकर premshankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और महामना मानवीय, मोतीलाल नेहरू आदि अनेक विचारशील नेता भी साध थे । गाधी ने अपने महान्‌ व्यक्तित्व से सत्य, अहिसा का प्रचार किया । उसी समय 1909 ई. मे मार्ने मिन्टो सुधार आये ओर बाद मे 1919 का एक्ट । इम प्रकार भारतीयो को कु अधिकार मिलनं लगे। काग्रेस भारतीय राष्ट्रीय भावना का प्रतिनिधित्व कर रही थी । अग्रजो ने हिन्दू-मुमलमानो म पारस्परिक वैमनम्य फैलाने का प्रयत्न किया, किन्तु गाधी अपनी सम्पूर्णं शक्ति स देश का नेतृत्व कर रहे थे और वै जनता मे लोकप्रिय थे। सामाजिक सुधार का कार्य आर्यसमाज, धिजासाफिकल सोसाइटी, रामकृष्ण मिशन आदि के दारा ह्य रहम था । स्वामी विवेकानन्द नै शिकागो मे भारत का मस्तक ऊँचा किया था । इस समय दश मे शिक्षा का प्रसार हुआ, कई म्थानो पर स्कूल ओर विश्वविद्यालय खुलने लगे ओर भारतीय विश्व की विचारधारा स परिचय प्राप्त करने लग । साहित्य कं क्षेत्र मे रवीन्द्र का आगमन एक नयी दिशा का मूचक धा। जवाहरनान नैह ने गाधी ओर रयीन्द्र कं व्यक्तित्व की तुलना करते हा उन्हे टस युग की सर्वयष्ठ विभूतिर्यो कहा है ।* रवीन्द्र भारतीय सभ्यता-मम्कृति कं प्रतीय, थे, तौ गाधी भारतीय जनता कं। हिन्दी-माहिन्य की विचारधारा का प्रतिनिधिन्व 'सरम्वती' करती है । बीसवी शताब्दी के आरम्भ की साहित्यिक प्रवृत्तियाँ इसके माध्यम से व्यक्त हुई । दूसरे हिन्दी साहित्य सम्मेलन मे 'हिन्दी की वर्तमान अवस्था' के विषय मे कहा गया था, 'हिन्दी के जिस नय॑ पौधे मे आज से तीस-पैतीम वर्प पहने कोमल कोमल पने दिम्वाई दिये धै वे अव इस समय, जनेक पल्नव पुजो से आ्छ्रदित दै ।' दिवदी युग का काव्य प्रयोगशीन अवस्था मे दिखाई देता है, जा अपने निर्माण मे सलग्न था । अनेक विचारधारा उस पर अपना प्रभाव दाल रही थी और वह हिन्दी की परम्परा का सृजन कर रहा था । इसी के कुछ ममय वाट छायावाद-युग का आरम्भ हो जाता है, जिसक' प्रतिनिधित्व इन्दु ने किया। प्रमाद-काव्य पर वर्तमान दशा का प्रभाव पडा ओर उनके कृतित्व मे युग की प्रवृनियोँ प्राप्त होती है । मूलतः व भावनायान सास्कृतिक कलाकार -, जो विचारो को भी प्रतिपादित करत चनते है । बीसवी शताब्दी का भारत एक विकासशील देश रहा है । स्वय विश्व के नवीन इतिहास का निर्माण हा रहा था । प्रगतिशील सामाजिक विचारधाराएँ नवनिर्माण मे लगी हुई थी । मार्क्स के पश्चात्‌ लेनिन ने क्रान्ति को नयाः जीवन प्रदान किया धा। वह गरीवो को भूमि, अन्न-वस्त्र तथा शान्ति के लिए समस्त राष्ट्र को एक सत्र में बॉधना चाहता ध' । राजनीतिक विचार जीवन क प्रत्येक क्षेत्र मे पदार्पण करने लगे और साहित्य ने भी इसमे सहयोग टिया । इसी के साथ अन्तर्राप्ट्रीयता और मानवता की भावनाओं मे विकास टुआ । पारस्परिक सघर्षों के दुष्परिणामो का देखकर अनेक विचारको नै शान्ति क सन्देश दिया । सन्‌ 1918 ई. मे विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका प्रसाद-साहित्य की पीठिका / 17




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