श्रेयसी भाग - 3 | Shreyasi Bhag - 3
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
133
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)6 श्रयसी
(ङ) सः सर्वदा चिन्तयति स्म -
म (स्वय)
(च) तस्मिन् उत्सवे क्षीरस्य आवश्यकता भविष्यति
(छ) प्राधवः धेनुम् अहर्तिंशिं सेवते
4. सन्धिम्८विच्छेदं वा कुरुत -
यथा ~ विद्या + आलयः = विद्यालयः
क = मासानन्तरम् ,
(ख) गुड + आदिकम् गुडादिकम्
(ग) ¢ तादूशावस्थायामू
£, अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमेण योजयत-
(क) रक्तबिन्दुभि; माधवस्य चक्षुः उन्मीलितम्।
(ख) माधवः धेनुम् अहर्निशं सेवते।
(ग) धनुस्तु मासैकपर्यन्तं दुग्धस्य अदोहनात् दुग्धहीनासीत्।
(घ) गौोपालकदप्पती कुम्भकारस्य गृहात् घटदशकं क्रीतवन्तौ।
(ङ) मालती स्वपतिं तादृशावस्थायां वीक्ष्य मूर्छिता जाता।
(च) माधवस्तु सपदि पंचोपचारेः गां पूजयति।
(छ) धेनु; पृष्ठपादाभ्यां ताडयित्वा माधवं रक्तरज्जितम् अकरोत्।
५
सोग्सता- विस्तार =
भाव-विस्तार ं
जो कार्य समय पर हो जाता है वहीं कार्य फलदायक होता है। आज के करणीय 'कार्य को करने
के बदले भविष्य में एक साथ करने पर अधिकाधिक फल मिलेगा ऐसा सोचने वाला' मनुष्य
अद्यतनीय मिलने वाले फल को खोकर भविष्य में मिलने वाले फल से भी वञ्चित रहता दै।
यथा
यो ध्रुवाणि परित्यज्य अश्चुवाणि निषेवते)
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि! `
कालेन बिन्दुमात्रेण जलवानेन यत्सुखम्,
न तथां सिन्धुदानेन गतेकालेऽस्ति संभवम्।।
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