बंटता हुआ आदमी | Bantata Huaa Adami
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
191
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हो भी सकता है--और नहीं भी !: आखिर क्या होगा दीनू साहव के
दिमाग में !--आसपास जंग खायी अल्मारियां और जहां-तहां पड़े
जंग खाये डिब्बे फिल्मों के” परेशानियां उसे .भी तो जंग की तरह ही.
खा रही हैं । पर उसे पता नहीं चला कि जंग कैसे अपनी खुरदराहद
उस पर बिछाता रहा ।
तो क्या पावटे की तरह वह भी उनके घर की भाजी तक भी ला
दिया करे । यह कर पायेगा वह ? पहले भी तो ऐसी वातों पर गुस्से
से भभक उठता था और कई नौकरियां गयीं । पांवों पर सिर . भुकाये
बैठे रहने वाली कई सलाहें एकदम फ्लेट हो गयीं । वह यहीं सोचता
वह् कभी नहीं गिरेगा । वे लोग गिर सकते हैं जिनके पास संस्कार
नहीं । कोई ठोस विचारधारा नहीं एक भले घर का प्रगतिशील विचारों
वाला ग्रेजुएट भला कैसे गिर सकता है !
वह जल्दी-जल्दी सीढ़ियां उतरने लगा--नहीं, दीनू साहव इस तरह.
उसे पटक नहीं सकते । पिछले दिनों कितनी दमतोड़ मेहनत की है उसने ।
चहुत-सा काम अकेले ही निवटाया है । इसीलिए न कि वह आशे. भी.
साथ ही' रखें उसे |
पर ज्यादा सोचने से क्या कायदा } दीनू साद्व यहां रोज मिलते
रहेंगे । चार-पांच दिन में कभी भी वात साफ हौ जायेगी ।
हर निकलते ही वारिश की वूंदों की रफ्तार बढ़ चली थी ।
आह ! वह छाता लाना ही भूल गया । कैसे मूल गया । पहले ऐसे
मौसम में मंजु ही छाता ले जानें की याद दिला देती थी 1
पानी खूब वरसने लगा । लोग इधर-उधर किसी छत की शरण लेते
के लिए दौड़ने-से लगे थे । वह भी भागता-सा फिर विल्डिंग में हीं लौट
आया 1 ।
कंद पांच को छत के नीचे खड़ा वारिश रुकने का इंतज़ार कर रहा
था आर अचानक वारिण शुरू हो जाने से कई लोगों का जमघटा वहां
लग गया था । साथ वाले घ्रोजेक्शन-थियेटर में अभी-अभी किसी फ़िल्म
६ : वदता हुआ ग्रादमी
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