बंटता हुआ आदमी | Bantata Huaa Adami

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Bantata Huaa Adami by निरूपमा सेवती - Nirupama Sevati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हो भी सकता है--और नहीं भी !: आखिर क्या होगा दीनू साहव के दिमाग में !--आसपास जंग खायी अल्मारियां और जहां-तहां पड़े जंग खाये डिब्बे फिल्मों के” परेशानियां उसे .भी तो जंग की तरह ही. खा रही हैं । पर उसे पता नहीं चला कि जंग कैसे अपनी खुरदराहद उस पर बिछाता रहा । तो क्या पावटे की तरह वह भी उनके घर की भाजी तक भी ला दिया करे । यह कर पायेगा वह ? पहले भी तो ऐसी वातों पर गुस्से से भभक उठता था और कई नौकरियां गयीं । पांवों पर सिर . भुकाये बैठे रहने वाली कई सलाहें एकदम फ्लेट हो गयीं । वह यहीं सोचता वह्‌ कभी नहीं गिरेगा । वे लोग गिर सकते हैं जिनके पास संस्कार नहीं । कोई ठोस विचारधारा नहीं एक भले घर का प्रगतिशील विचारों वाला ग्रेजुएट भला कैसे गिर सकता है ! वह जल्दी-जल्दी सीढ़ियां उतरने लगा--नहीं, दीनू साहव इस तरह. उसे पटक नहीं सकते । पिछले दिनों कितनी दमतोड़ मेहनत की है उसने । चहुत-सा काम अकेले ही निवटाया है । इसीलिए न कि वह आशे. भी. साथ ही' रखें उसे | पर ज्यादा सोचने से क्या कायदा } दीनू साद्व यहां रोज मिलते रहेंगे । चार-पांच दिन में कभी भी वात साफ हौ जायेगी । हर निकलते ही वारिश की वूंदों की रफ्तार बढ़ चली थी । आह ! वह छाता लाना ही भूल गया । कैसे मूल गया । पहले ऐसे मौसम में मंजु ही छाता ले जानें की याद दिला देती थी 1 पानी खूब वरसने लगा । लोग इधर-उधर किसी छत की शरण लेते के लिए दौड़ने-से लगे थे । वह भी भागता-सा फिर विल्डिंग में हीं लौट आया 1 । कंद पांच को छत के नीचे खड़ा वारिश रुकने का इंतज़ार कर रहा था आर अचानक वारिण शुरू हो जाने से कई लोगों का जमघटा वहां लग गया था । साथ वाले घ्रोजेक्शन-थियेटर में अभी-अभी किसी फ़िल्म ६ : वदता हुआ ग्रादमी




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