गांधीवाद ; समाजवाद | Gandhiwad Samajavad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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‡ ७ > वासनाओं को बढ़ाता हो, तो उसका एक ही परिणाम होगा तर वह यह कि स्वतंत्रता का दिन आर और आगे ठिलता चला जायगा । यह सिद्धान्त एक सचाई हे । इसे दम जल्दी समकः या देर से सम, समभना तो पडेगा ही । जल्दी समने मे कल्याण है, देर से समभने मं जालिम है, क्योंकि हो सकता है, हम इतनी देर मं समभ कि उसके वाद्‌ समभते हुए भी हाथ मलकर रद्द जाना पड़े--बाजी हाथ से निकल चुके । और यह तो निर्विवाद है कि संयमी, इन्द्रियजित ग्रौर सादा जीवन बिताने वाली जनता के बल पर दी देश स्वतंत्र और समुद्ध बन सकेगा ॥ १.९ डे दब जिनकी बुद्धि या हृदय गांघीजी के विचारों तथा मार्गों के प्रति विशेष श्राकृष्ट होता है, उनसे दो-चार बातें मैं कददना चाहता हूँ । गांधीजी के विचारों--श्रथवा कदिए, पद्धतियों--में कुछ तत्त्व तो ऐसे हैं, जो अचल कदे जा सकते है, जो लोग उनके जीवन या उपदेश से प्रेरणाया मागे-दशन चाहते है, उनके लिएवे श्राचरणोय रहै । इस प्रकार का पटला श्रचजल-तच्वच यह है, कि जीवन की सभी समस्याश्रोः का विचार ग्रौर हल सत्य, अरिंसा और सेवा द्वारा ही करने का प्रयत्न होना चाहिए] । इसमें सत्य; झ्रहिंसा और सेवा, ये तीन अंग या मर्यादायें कही गई हैं। इनका क्रमशः अलग प्रलग विचार करना ठीक होगा । “सत्य” में नीचे लिखी बातों का समावेश होता है--पूर्वग्रह से दूषित न हाना, किन्तु सत्य को मानने के लिए सद्‌ा तैयार रहना, तौर इस कारण सत्य से, फिर वह कितना ही पुराना श्र बहुमान्य क्‍यों न हो, और उसमें हम कितने ही झ्रागे क्यों न बढ़ चुके हों, वापस लौटने में भय श्रौर लज्जा न रखना; आर साथ ही, जिस समय जिस बात के बारे में सत्यता का विश्वास हो, उसके लिए; अपना सर्वस्व खोने को तैयार रहना । थ “अदि्सि?--इसका अर्थ होता है हर प्रकार के धर्म का--गांधीजी क न # 6 ० क उ २ 1 6.4 (श. ‡ ~ ॐ 8१4३8.




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