संत तुकाराम | Saant Tukaram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.03 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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No Information available about हरि रामचंद्र दिवेकर - Hari Ramchandra Divekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऋ
महाराष्ट्र भक्तिघम [१५
एकनाथ की मृत्यु के समय महाराष्ट्र को स्थिति उदयोन्मुख थी । श्रीज्ानेशवर
महाराज ने जिस समय महाराष्ट्र में भक्ति-मार्ग की स्थापना की, वह समय सददाराष्ट्र के
अत्यंत अनुकूल था । उस समय रामदेवराय से यादव-चंशी न्यायी राजा थे । हेमाद्रि पंडित
से शिल्पकला तथा लघु-लेखन-लिपि के प्रवतंक विद्वान् मंत्री थे, वोपदेव से त्तीकण-बुद्धि
पंडित थे, न्ञानदेव से ज्ञानी श्र नामदेव ऐसे नाम-प्रेंमी भगवद्धक्त थे श्औौर मुक्तावाई,
जनावाई-सी भक्त-ख्ियाँ भी विद्यमान थीं । इस के बाद तीन सदियाँ महाराष्ट्र में घुरी तरह
से युज़री । यवन लोगों का झराक्रमण महाराष्ट्र भर में हो गया श्र राज-सत्ता नाम को भी
महाराष्ट्र में न रही । जिधघर देखो उधर मुसलमानों का श्रसर दिखाई देने लगा । पर फिर
भी यदद झसर स्ंदेशीय न था । राजकीय बातों में यद्यपि महाराष्ट्र श्पना स्वत्व खो बैठा
था, तथापि धार्मिक, सांसाजिक इत्यादि विषयों में उस ने अपनी बात बड़ी हिफ़ाज़त से
संभाल रक्खी थी। बहमनी राज्य के इकड़े दोते ही मराठा वीर श्लौर राजपुरुष
अपनी राजकीय स्थिति के भी संभालने लगे । मराठा लोगों का स्वाभिमान-दीपक बिल्कुल
कभी न बुका; क्योंकि महाराष्ट्र-संतों द्वारा इस में हमेशा स्नेह डाला दही जाता था ।
श्ञानेश्वर, नामदेव प्रभति संतों ने हिंदूधर्म के जिस उदार नए स्वरूप का उपदेश किया था,
उसी के कारण मुसलमान लोगों के झ्रमल में भी हिंदूपम जड़ पकड़ रहा था । श्रीच के प्रति-
कूल काल में जो साधु-संत हुए, उन्हीं के उपदेशामुत से महाराष्ट्र विरोधकों से टफर
लेता रहा । मुसलमानी मल के नीचे रहते हुए भी ये साधु-संत मद्दासप्ट्र भाषा की वृद्धि करते
रहे और श्रपने श्रमिनव महाराष्ट्र-धर्म की व्वजा फहराते रहे । यवन राजाओं के रह
कर भी दामाजी पंत ऐसे वेदर के सत्पुरुप ने श्रकाल के समय वादशाद्दी कोर्टों का
लुटवा दिया दौर झपनी जान भी जाखिम में डाल कर हज़ारों ऱारीयों के प्राण बचाए ।
जनाद॑न पंत ने भी अपनी तपस्या से बड़ा भारी काम किया । एकनाध ने जिस ईश्यर-भक्ति
का उपदेश किया, उस उपदेश से तो भिन्नभिन्न देवताद्यों की उपासना करनेवाले भी
एक ही भक्ति-मार्ग के झ्नुयायी कहलाने लगे। ससश्द्गी पर शक्ति की उपासना करने
वाले झंवकराय, चिंचवड़ में गजानन की भक्ति करनेवाले सोरया गोसाई', शिंगणापुर के
शिवभक्त महालिंगदास इत्यादि लोगों को एकत्र संगठित करने का काम श्रीएकनाथ की ही
प्रासादिक वाणी से डुच्मा । सारांश यह कि सच्नहवीं सदी के श्रारंभ में इन पृरवेक्ति मददानुभाव
से भी चढ़े-चढ़े विभ्वतियों के द्रवतार की महाराष्ट्र अपेक्षा कर रहा था |
एसी श्रवस्था में महाराष्ट्र के अच्छे दिन दिखलानेवाले महात्माद्यों का. जन्म
। श्रीरकनाथ जी के समाधिस्थ होने के पश्चात् नी वर्ष ने ही तुकागाम श्र रामदास
शन दो भगवद्धक्तों का अवतार हुमा । ये दोनों भगवद्धक्त उन्नीस वर्ष के भी न हुए थे कि
मशाराष्ट्रधर्म-संस्थापक, सोब्राझ्ण-प्रतिपालक श्ीशिवाज नदाराल सायगढ़ पर श्दतीरा
हुए । ठुकाराम, रामदास झौर शिवाजी मददासाप्ट्र का उद्धार करनेवाले तीन महापुरुप ६ |
'पीशिदाडी महाराज ने झ्पनी उज्स्वल देशभक्ति से घौर दतुपम वीरता से सदाराष्ट्र दो
पराधीनता से हुड़ाया । धीसमर्थ रामदास स्वामी जी ने धर्म दौर राजनीति दा दड़ा ही सपुर
मिलन नल भर वद्धकक््त डर चो तह. कब हा सं के दनोया अर शु दिन
फर पथ भरयवद्धवता को चोर चार दा दा पट पर रन
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