श्री विचार सागर | Sri Bichar Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्ताव ना, 4 इस ग्रथकें समान ममछक उपयोगी भाषा प्रय भाधुनिक समयमे अद्ेत मततिषे नहीं हे. संरकृत में थी ए से संपर्न वेदांत की प्रक्रियाके गंय अल्पदीं है. प्रंय कर्ते श्री निश्वरुदाप्तजीने अंक दूसरे ओ तीस रेभं प्रंधकी महिमा कशे षै, सो यथास्थितदी कशे है. मातम बोध विषे उपयोगी कोई की. प्रक्रिया, इसमें नहीं एसे नहीं है ; औ शो बीकहुं बंद विरुद नहीहै. ^“ हुत करिके वेदांत प्रक्रियाके उपर, भाषा पदनेवालौकी रुचि इस ग्रंथकों उप्पत्तिसे अनंतरहीं हुई हे. इत प्रथकी उत्पत्तिं पुवं भाषाजाननेवारे अनेक प्रहस्य ओं साधु आदिक सत सगौ, वेदांत प्रक्रियाक्‌ यथास्थित नहीं जानतेये. इसके अनंतर अब बहुत पुरुष प्रक्रियाक्‌ नानिके निःप्देह ब्रह्मनिष्ठ हुवे हैं. (“वृत्ति प्रभा कर ” जो इस ग्रंथके कर्तेने कीया है, तिसका जिस जिस पुरुषने सम्पक अम्याप्त कीया हे; सो मानी पंडितहीं भये हैं. औ तैसे क 0 क पुरुषके साथ संस्छतके वेतत, जन साच्यं करते ईह, तव आशव्कू पावते हैं ; भी कहते हैं:- सहो क्या इन भाषा जाननेषालकी बुद्धि है ! इस ग्रंथमें अनुबंध निरूपन है, ऐसा अनुबंधका सुंदर निरू- पन सस्रत प्र॑थननिषे बी मिलना कठिन दै. जेप जेवरीविषे सप भध्याप्तरूप करि प्रतीत होवे हे ; तेसे परमात्मा विषे सब स्थल, सूक्ष्म प्रपंच अध्यास्रूप जीवकू प्रतीत होवे है; ऐसा मेदांतक। सि- दवति है. जेवरी विषे सर्पं भरमम अध्यासकी सामग्री कदी है; परंतु जगत अध्यासमें ती, कोइ मो सामग्री नहीं है ; सामग्री विनाददी प्रतित हि है, रेता इस ग्रंथमें प्रौदिवाद करी सिद्ध कीया है. इस्त प्रकारका अध्याप्त निरूपन कोई संस्कत प्रथविषषे वी बहुत करे नहीं देषिये है. और बी अनेक उपयोगी सिद्धांत अविरे।ध, स्वतंत्र दुत विचार ग्रंथ कत्तने इसमें रवे हैं




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