आधुनिक हिंदी काव्य में भक्ति चेतना का स्वरुप : निराला के विशेष सन्दर्भ में | Adhunik Hindi Kavya Mein Bhakti Chetana Ka Swarup : Nirala Ke Vishesh Sandarbh Mein
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
389
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अथर्थिता भक्ति। नारद ने भी गौणी भव्ति को स्थापित किया. और उसके ग्यारह प्रकार बताये
गुण माहत्म्यासव्ति, रूपासव्ति, पूजक्क्ति, स्मरणसव्ति, दास्यसक्ति. ताख्य-
सवित, वात्सल्यसक्त, कान्तासक्ति, आत्म ॒नवंदन सक्ति, तमन्यता सक्ति, परम विरहा
सक्ति। श्रीमद्भागवत् में भक्ति के नौ प्रकारौ की चचौ कौ गयी।
श्रवणं कीतेनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अचैनं वन्दनं दास्यं सख्यं आत्मानिवेदनम्। 1 ‡
इसके अतिरिक्त भक्ति के अन्य प्रकार से भी भेद भागवत में मिलते है। इनके अनुसार
भक्ति तीन प्रकार की बतायी गयी - सात्विकी राजसी ओर तामसी“ भागवत् में वणित भव्ति
के ये तीनों प्रकार गौणी भक्ति के ही अन्तर्गत आते है। इन वर्गीकरणों के अतिरिक्त भी भागवत
ने भवति के कई ओर प्रकारो की चचौ की गयी हे। जसे निष्काम भवतः अहैतुकी भक्तिः
नैष्ठिकी भक्ति अकिंचन भवतिः निरपेक्ष भविति? आदि।
` भविति रसामृतरसिंधु मेँ रूप गोस्वामी ने भव्ति के जो भेद-विभेद प्रस्तुत किया है,
उनके अनुसार भवित के तीन प्रकार सिद्ध होते है - साधन भव्ति, भावभविति ओर प्रमाभक्ति। 1५
साधन भक्तिकेदोभेद हं - वैधी भविति, रागानुगा भक्ति।:‡ जो भक्ति शास्त्रों के विधि निषेधो
का अनुपालन करती हुई विविध विधानं से संपादित की जाती है उसे वैधी भक्ति कहते है।
रागात्मिका भक्ति वह है जो रस का अनुभव प्रदान करती हं। वैधी भक्ति वह धारा है, जो
अपने दोनो किनारों से बंधी होती है, पर रागानुगा वह बाट् है जो किनारों का बंधन
स्वीकार नहीं करती। रागात्मिका भक्ति को भी रूप गोस्वामी जीने दो भागों में विभाजित किया।
कामानुगा ओर सम्बन्धानुगा।
तन्मयी या भवद् भक्तिः साऽत्र रागत्मिकोदिता।
सा कामरूपा सम्बन्धरूपा चेति भवेदुदिधा। 1
मातम म म ना मा ममा त मि ताति सि क ति तम न म ति म नो थि नि ति सि पि मि सा नि णि स्व एस नल्तवापाए पका ात त भयि ् ति न सलाद पवपपरमन साय काला जानना मामला साल
1 भागवत् ~ 7/5/23 7. भागवत् - 1/2/18
2 भागवत् - 3/29/10 8. भागवत् - 5/18/12
3 भागवत् ~ 3/29/9 9. भागवत् - 11/20/35
4. भागवत् - 3/29/8 10. सा भवितः साधनभावः प्रेमाचेति त्रिधोदिता)
5 भागवत् - 5/18/21 भव्ति रसामृत सिन्धु - 2/1
6. भागवत् - 1/2/18 11. वैधी रागानुगा चेतिसा द्विधासाधनामिधा
12. भक्ति रसामृत सिंधु - 2/278, 273 भक्ति रसामृत सिधु 2/5
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