भारतीय संगीत और संस्कृति तथा अध्यात्म के अन्योन्याश्रित सम्बन्ध का विश्लेषणात्मक अध्ययन | Bharteey Sangeet Aur Sanskriti Tatha Adhyatm Ke Anyonyashrit Sambandh Ka Vishleshnatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)से समस्त मातु का चक्र व्यक्त होता है, जिन्हें वाच्यवाचक भाव का बोधक कहते हैं।
स्वर' शब्द स्वर धातु से 'अच' प्रत्यय करके निष्पन्न होता है, जिसका अर्थः है -
'शब्द' 'कोलाहल' संगीत के सुर' ध्वनि की लय 'सात की संख्या अदि! स्पष्ट ह
कि 'स्वर' शब्द का प्रयोग अनेक अर्थो में होता हआ देखा जाता है। कहीं पर सस्वर
शब्द 'वाणी' के अर्थ, में, कहीं 'वर्ण-विशेष' के अर्थ में कहीं संगीत के षड़ज अदि
संपक के अर्थ भ कहीं सूरय, 'सोम', प्रणव, श्री इत्यादि के अर्थ में प्रयुक्त होता है।”
श्रत्यनंतरभावी य ॒स्निग्धोऽनुरणानात्मक' ।
स्वतो रेजयति श्रोतृचित्तस स्वर उच्यते ।।
अर्थात् वह ध्वनि, जो अनुरणात्मक है तथा स्वत मनोरजन प्राप्त करने
वाला गुण जिसमें निहित है, वही स्वर है। स्वतः रजयति के अनुसार स्वत ' शब्द
का स्स्व ओर रजयति का र मिलकर स्वर शब्द बनता हि। राघव आर0 मेनन
के अनुसार -स्वर प्व तथा र से मिलकर बनता है, जिसका अर्थ है स्वयम् के लिए
प्रस्तुत करना। 13 रंजकता स्वर का प्रमुख लक्षण है। स्वर में स्निग्धत्व न रहने
से अनुरणहीन प्रतीत होता है ओर उससे रंजक क्रिया नहीं हो सकती। स्वर में
स्निग्धत्व न रहने से अनुरणहीन प्रतीत होता है ओर उससे रनक क्रिया नहीं हो
सकती। प्रथम उत्पत्न रणन (नाद) मात्र ति कहलाती है। तदनंतरं जो अनुरणन
अर्थात् उससे उत्पन्न होने वाला नाद-आँस होता है, उसे 'स्वर' कहते हैं। अनुरणनयुक्त
(श्रति के साथ) स्वर का व्यवहार करने से स्निग्धता तथा मधुर भाव उत्पन्न होता
है। संक्षेप में जिस आवास मे माधुयं है, वही स्वर हे।
क्या शति स्वर क्या एक है अथवा भिन्न-भिन्न संगीत परिजात मं अहोबल
पंडित ने इस अंतर को भली - भोति स्पष्ट किया है।
श्रतयः स्यु स्वरभिन्नाः श्रवेणत्वेन हेतुना ।
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रागाहेतुत्व एतासां श्रति संजैव सम्मता । ।(' संगीत परिजात' 38 -39)
1- ड0 सुषमा कुलश्रेष्ठ - कालीदास साहित्य एवं वादन कला विषय प्रवेश.
व न शस ॐ नाथ ~ लन अ
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