प्रसाद - साहित्य में नारी | Prasad Sahity Men Nari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
87 MB
कुल पष्ठ :
725
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सफमेव 7 दितीयम नह नाम तिकिचिनम
तब उसमे आत्ममंधन के द्वारा नारी की साध्टि की । पुरुष रुप मैं बहस और
प्रकाति कप भैं सत्री , दोनों {क्क् अगि की सॉष्टि कर सकते मैं सम हुस |
दभर स्क ही तत्व के दो अनुपूरक अंग हैं ।
ऋग्वैद मैं नारी त्व का सवत्कृष्ट रूप दैव्य के वर्ण ना में तत
है। विमिनन नारियाँ के दुष्ट ति इस प्रकार हैं , जैसे अदिति स्वाधी सता
की देवी माती गहँ है , जौ साष्टि का संचार और अंघनों से मुक्ति प्रदान करती
ह, इन्दुएनी अपनि स्थाग अर बछिदिन मै रन्द को बलवान बनाती है ,
दूसरी और पत्नी के रुप मैं को प्रकट हौती है । सूयाँ आदर हिन्दू वधू का
प्रतिनिधित्व काती है । सक और संगीत की देवी सर्रवती है, तौ उभा
प्रकाश की देवी के डप मैं प्रॉ ता ज्ठत हुई है । इस प्रकार वैदिक कॉथ्ययों ने
सदिये कौ नारी कै रूप मैं देशप है । प्राकातिक धदिये है संपन्न रभ का विनि
वैदिक काठी न काँवियों ने सक लावण्यमी नारी कै रुप पश्यि है।
ऋग्वेद के प्रमाण के जाधपर पर कहा जा सकता है गक माता-पिता
कदु स्व प्रैम कि अदायरपाशि कम्था को प्राप्त होती थी । अन्ेद मैं
कम्या और माता-पिता कै संबंध का निरश्फणण जथ प्रकार शक्थि गया है `~.
* संग माने युवती समस्त रवसारपजामी पपिब्रोरूपएये ।*
= ऋ रक हू
(परस्पर उपकारी माव ध युक्त नित्य तार्ण युवती और जामात
पिता की भौद मैं बैठते हैं )
गारी की शाक्त और महत्व का केत्रोत उसके प्रेम मैं कौता था ,
तथा वही पति भाग्यवान समकप जाता था । जौ प्रैममयी पत्नी को प्राप्त
क्म् थक |
पिरि निति तानि माया ति ततिः सोः सिति चि ति
१- बच्दारण्यक उपा मु
र ऋभ्व [द ध्री ८ । । तथौ ज्येव कु ह |
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