गाँधी की देंन | Gandhi Ki Den
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७ गांधीजी की महानता
चते ह 2 दारोगा साहव ने गांधीजी से इसकी शिकायत की । गांधीजी
ने धरणीवावू से पूछा कि वहां आपके साथ दारोगाजी ही जा बैठते
थे कि और भी कोई ? वकील साहब ने कहा कि क्यों, किसान भी बैठते
थे । तब गांधीजी ने कहा कि जब उतने किसानों के वैठने से आपको कोई
हजं नही होता ह तो सिफं एक ओर आदमी के मिल जाने पर आप क्यों
घवराते ह ? माप दोनों मे मेद ही क्यो करते ह ? गोह, जान पड़ता है आष
दारोगाजीसे उरते हं । उस विचारेकोभी किसानों के साथ क्यों नहीं
बैठने देते ? यह् विनोद सुनकर किसान तो निर्भीक हो ही गये, दारोगाजी
को काटो तो खून नहीं । लाज से गड़ गये। गांधीजी ने उन्हें सामूली
“किसानों के बीच गिन दिया । उस दिन से वकील साहव तो निर्भय हो
गये, किसान भी विल्कुल निडर होकर निलहों के सामनं उनके अत्या-
चारों का वयान करने लगे ।
गांधीजी के मत में भय के लिए जगह ही कैसे हो सकती है ? वहां तो
कुछ छिपाकर कहने या करने का विछकुल काम ही नहीं । वहां तो मन,
वचन ओर कम की एकता है । बेचारे खुफिया पुलिस वाले वहां से किस
भेद का पता लगावेंगे ? गांधीजी के विचारों के अनुसार जो भी कुछ करते या
करना चाहते उनमें किसी तरह के छिपाव की प्रवृत्ति न होनी चाहिए ।
इसलिए हम कोगों के सामने खुफिया पुलिस का भय खतम हो गया ।
किन्तु महात्माजौ कहांतक सब वातो को प्रकादित करते रहना
चाहिए, इसकी भी सीमा रखते हैं, क्योंकि वे तो समन्वय करके चलते हैं ।
एक उदाहरण से हम लोग समझ जायंगे कि वे खोलकर कहने या नहीं
कहने में कैसा सुन्दर समन्वय रखते हें । जिन दिनों हम लोग चम्पारन में
व्यस्त थ गौर एक धर्मशाला में डेरा डाले हुए थे, उन्हीं दिनों एक रात हम
लोग खुली छत पर अगलें दिन की दिनचर्या पर बैठकर विचार कर रहे थे 1
एक साथ बैठकर ऐसा रोज ही कर लिया करते थे । एक सज्जन, जिनके
नाम और कृतियों से सब लोग परिचित थे और जिन्होंन हिन्दुस्तान और इस
प्रान्त मे जागृति खान मे काफी हाव वटावा धा, एक रात वहां सहसा जा
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