भारतीय इतिहास की रुपरेखा | 1339 Bhartiya Etihas Ki Ruprekha; (1941)

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1339 Bhartiya Etihas Ki Ruprekha; (1941) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १० ) सर्दियों मे लिखी गई', र तभी आर्य सभ्यता वाला अकरण (= भक रण ८) भी | अब जो तीसरा खण्ड है उस के सभ्यता के इतिहास- सम्बन्धी अंश १६२४-३० सें पूरे किये गये । मुझे तब यह अनुभव होने लगा कि भारतवषं की जातीय भूमि्यो की विवेचना भूमिका मे करना प्रावर्यक है । तव भूमिका खण्ड १९३० के उत्तराध और ३१ के शुरू में काशी में लिखा गया । उस सिलसिले मे कम्बोज ऋषिक आदि प्राचीन उत्तरापथ के कई देशों का पता चला, और उस कारण, ठीक मै लव झपने धन्थ को लगभग पूरा हुआ सम रहा था, के उस मे अनेक प्रवर्तन करने पदे । ठीक उसी समय जायसवाल जी ने शक-सातवाहन इतिहास पर॒ नद रोशनी डाली जिस सं सुरे समूचा सातवाहन युग मी किरि से क्तिखना पडा । १६३१ की गमिर्यो मे देहरादून मे वैड कर मौय युग को दोहराया और उस का सम्यता-इतिहास का अंश (१७ वाँ प्रकरण ) लिखा गया । उसी बरस सर्दियों में अयाग सें सात्तवाइन युग फिर से लिखा गया; संवत्‌ ६८८ की माध पूरिमा ( फरवरी 9६३२ को प्रयाग से वह कार्य पूरा हुआ । १३३२ में बरस भर यह अन्ध प्रका- शक के पास पढ़ा रहा; पर १९३३ के मार्च से झगस्त तक उस की छुपाई के समय मैने उस मे अन्तिम संशोधन किये । मेरा विचार था कि गुप्त- युग का इतिहास भी इसी अन्थ के साथ प्रकाशित होगा । सच्‌ १६२७ में मेने उसे जैसा लिखा था, वह मेरे पास पडा है; पर विद्यमान दुशाओं में डसे दोहरा कर ठोक करने को मेरे पास अवकाश नहीं है । इस रूपरेखा में अनेक कमियों है सो सुके खूब मालूस हैं। पाठक- पाठिकाओं से मेरी प्रार्थना है कि वे यह भूलें नहीं किं यह भारतीय इति- हास की केवल रूपरेखा है; श्र साथ ही मेरे पास जो चुच्छ साघन थे उन्दीं के आघार पर मैने इसे प्रस्तुत किया है 1 हिन्दी में अभी तक इतिहास-लेखन की कोई पद्धति नहीं बनी | मेरे रास्ते सें यदद बढ़ी कठिनाई रही । आधुनिक पाश्चात्य ज्ञान को झपने दिसाय




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