परिव्राजक | Parivrajak

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Parivrajak by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्या वणन करता हआ पिर कया चक रहा हूं । देखो पहले दं। तो मैन कह रखा है, मेरें दिए यह सब गेर-मुमकिन है; लेकिन अगर दरदाइत वार सको तो फिर कोशिश कर सकता हूँ । अपने आदमियों में एक रूप रहता है । बैसा और कहीं भी क एतिद्ांसिक इर्यिट के मत से लालवेगियों ( झाडदार-मेह्तर- भम्प्रदाय-दिशेष ) का उपार्प अदिपुष्प या युलदेवता लालवेग और उत्तर पदिचम का. लाबगुरु ( रास भरण्य किरात) अभिन्न है । बाराणसीबाली लालवेगियों के मत से पीर जदर दी ( चिदिनि यासाधु ैयद जदर पर छोडेनग दे




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