मॉडर्न पोलिटिकल एनालिसिस | Modern Political Analysis
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 ] | मारतीय कालगरना श्रौर पंचाग
गी निमी णी भीभो वा क क व्या च्छ |
भयो जोय,
<
श्रमावस्या सते दूसरी श्रमावस्या तक एक क्राति वृत के 360 च्रं प्रण हो जते है। एक तिथि श्रीसतन,
23 चण्टा 37 मिनट 30 संकण्ड तक रहती है । वह् ज्यादा से ज्यादा 26 घण्टा 47 मिनट श्र कम
से कम 19 वण्टा-59 मिनट तक रहती है 1 श्रत' कभी-कभी तिथि एक सौर दिन में ही श्रारम्भ होकर
समाप्त हो जाती है । ऐसी तिथि क्षय तिथि कहलाती हे श्रौर उसके वाद वाले दिन श्रगली तिथि गिनी
जाती है । उदाहरणार्थ, यदि सूर्योदय के समय तिथि चौथ थी लेकिन उस दिन सूर्योदय के वाद पचमी
भ्रारम्भे होकर दूसरे दिन कै सूर्योदय के पहले ही वह् समाप्त हो गई तो प्रागामी दिन सूर्योदय की तिथि
छठ होगी भ्रौर तिथिपत्रकमे इस क्रम से लिखी जावेगी 3, 4; 6,7 श्रादि। पचमी लिखी हीनही
जावेगी । कभी-कभी एके तिथि दो सूर्योदय तकं चलती दै । उदाहरणार्थ, यदि चौथ की तिवि सूर्योदय
से श्रारम्म होकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक रहे तो दोनो दिन चौथ मानी जावेगी । त्तिथिपचकमे तव
तिथियां 3, 4, 4, 5 श्रादि के क्रम से लिखी जावेगी ।
तिधियो का घटना-वढेना चन्द्रमा श्रौर सूयं के मोर्गांश के समान गति से नही वटने के कारण
होता है। यो चन्द्र मास लगभग 29 50 दिन का होता है श्रौर उसमे 30 तिथिया होती है । श्रत
अधिकतर तिथियो का क्षय ही होता है ।
पंचागों में समय की इकाई घटी मे दी जाती है । एक घण्टा मे 211 घटी होती है । एक घटी मे 60
पल श्र एक परल, मे 69 विपल होते है । ग्रत यदि किसी तिथि से सामने घटी व पल लिखे हो तो
समभना चाहिए कि वह तिथि. सूर्योदय के इत्तने घटी व पल के चाद समाप्त हुई ।
पंचागो मे सक्रात्तियो के सामने भी घटी वे पल लिखे जाते है जिसका श्रथं होता है कि वह् सौति
इतने घटी व पल पर श्रारम्भ.हुई ।
यदि शुक्ल प्रतिपदा 34 घटी से श्रधिकंदहो तो उस.दिन चन्द्रमा नही दिखाई देगा । लेकिन यदि
उससे कम हो तो चन्द्रमा उसी दिन दिखाई देगा । ईसवी सन् की जिस तारीखे को श्रमावस्या तिथि पडती
है, उसके 1947 की फाह्गुन श्रमावस्या थी । इसके 19 वर्ष वाद 11 मार्च 1910 को फिर वि. सं 1966
की फाल्गुन की-ग्रमावस्या तिथि पडी 1 । `
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भ्राधी तिनिके प्षमयको जव कि चन्द्र सूयंसे 6 श्रश श्रागे बढता है, करण कहते है। करण
कुल 11 है-मव, वालव, कौलव, तेतिल, गरवनिज, विधि, शकुनि, नाग, चतुप्पद िन्तुश्न ।
प्रत्येक तिथि में दो करण वीतते है । शुक्ल प्रतिपदा के उत्तराद्ध में भव नामक करण होता है ।
कृष्ण पक्ष की चतु्देशी के दूसरे राधे भाग को शकुनि कहते है । प्रथम सात करण चर कहलाते हैं श्रौर
श्रंत के चार करण स्थिर कहलाते है । '
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