नगरी प्रचारिणी पत्रिका भाग १० | Nagri Pracharini Patrika Vol 10 (1986) Ac 1576

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Nagri Pracharini Patrika Vol 10 (1986) Ac 1576 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री मुनि कस्याणविजयं ५६७ के दषीभाव चैर एक शृखरे की खटपट का बैद्धो ने जा षन दिया. है बह भगवती सूत्र मे बिव जमालि धैर गैतम इंद्र- भूति के विवाद का विकृत स्वरूप है । कने पर वे उन स्थविर पर एशूवम वरद इए भ्नौर दंडो से मारकर उन्दने स्थूलाचाय्य को फेक दिया । शक सै १७४११ में बने हुए देवचंद्र के राजावली कथा नामक कन्नढ़ पंथ में भी भद्रबाहु धार चंद्रगुप्त की कथा है, जा कि उपयुक्त भद्रवाडुचरित्र के समान ही है। हाँ, इसमें कुछ कुछ नए संस्कार भी हैं, जैसे--भद्वाहु- चरित्र में उज्जेनी के राजा चंद्रयुप्त के सेलह स्वप्न होते हैं, पर राजावली - कथा के लेखक ने वे ही सोलह स्वम्र पाटलिपुत्र के राजा चंद्रगुप्त को दिखाए . हैं। इन एक दूसरे से सिन्न कथानकों के देखते हुए हमें यही कहना पढ़ता है कि भद्रवाहू की प्रमुखता में दुच्िग में जाने के बाद स्थानिक श्रमणसंघ के चख-घारण कर लेने से दोनों पार्टियें के मिन्न हो जाने की जो विद्वानों की सम्मति है वह केवट ाघुनिक दृंतकथाओं के ऊपर श्वद्धंबित दे । जैन संघ के ददधिण में जाने का सबसे पुराना उल्लेख पारश्वनाथ वस्ती के उक्त लेख में है, पर उसमें भद्वाढु के दुक्तिण में जाने का कोई उत्लेख नहीं है। श्र ' उसमें उद्िखित भद्बाहु श्रतकेवली नहीं पर उनके परंपराभावी दूसरे ` नैमित्तिक भदरवाह है । विक्रम की दशम सदी के बद्त्कथाकाप के झंथकार भद्रबाहु को श्रतकेवली तो लिखते हैं पर उनके दक्षिण में जाने से साफ इनकार कर देते हैं घोर वे चंद्गुप्त को ही चिशाखाचाय के नाम से भद्रबाहु के सवका सुखिया बनाकर दक्षिण मे शरैर रामिल्ल, 'स्थूज्ष्द्॒ तथा ;भद्राचायं को अपने अपने सघ के साथ सिंधु ्रादि देशो मेँ मेजवाते है । भद्रबाहु-चरित्रकार इससे भी श्रागे बढ़कर स्थूर्रदध हा स्थूलमदं शरैर ` भद्राचायं के स्थूलाचायं बना.लेते है श्रौर भदरवाह को ददि में पहुँचाकर अनशन कराते हैं । राजावली कथाकार रत्ननैदि की सब बातों का स्वीकार कर लेने के उपरांत चंद्रगुप्त को पाटलिपुत्र का राजा ठहराने की चेब्टा करता है। इस प्रकार झागे से आगे बढ़ाई हुई बातों को इस “प्रमाण” न कहकर दंतकथा मात्र या मनगढ़ंत कल्पना ही कह सकते हैं । १२ चंपा के प्ूर्णभद्र चैत्य में महावीर के सामने श्राकर जिस समय जमालि भाप केवटी हने की शेखी हाक रहा था उस समय महावीर के मुख्य शिष्य




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