रूस की पुनर्यात्रा | Roos Ki Punaryatra

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Roos Ki Punaryatra by लुई फ़िशर - Lui Phisherश्री श्याम - Sri Shyam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# हि रह ‡ { का, सुपरिचित मास्को में ११ ने युक्षसे कदा कि कक्षा मेँ ओय पर खाने की खटी की, घात मेरे मस्तिष्क म कभी नहीं आयेगी । ( पुनश्च > जिस क्षण मैं मास्को से प्राग पहुँचा, मेने अनुभव किया कि .विरोधा भास में मास्को-निवासी कितने शुष्क और फूदद दिखायी देते हैं । सोवियत व्र निघ्न कोटि के हैं, उनका रंग फीका होता दै तथा कप की सिलाई की दौली.कम-से करम दस वर्षे पुरानी दै! ओर रोम, पेरिस अथवा छन्दन की तुरना मेँ स्वयं प्राग भी वेन-भूषा कौ दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ है । ) सोवियत खाद्-स्थिति में भी छुधार हुआ है । रोटी और केक, वाइन और वोडका शराब, शक्कर, कैण्डी, आइसकी म, स्वदेशी और आयात किये हुए मक्खन पनीर और मार्गेरिन तथा ताजी और सुखायी हुई, विशेषतः सुखायी हुई, मछली की आपूर्ति मौसमी परिवर्तनों के साथ मास्को में अत्यधिक जौर अन्यत्र पयौप्त है । फिर भी, सरकारी पत्र मांस और दूध के अभाव को स्वीकार करते हैं । ( ३ अगस्त १९५६ फो प्रवदा * ने ठिखा था-“ अनेक नगर पढले से दी दूध अथवा दूध से निर्मित देने वाली वस्तुओं के - किसी प्रकार के अभाव का अनुभव नहीं करते । ) न इस तथ्य को देखते हुए अभाव उल्लेखनीय ही है कि द्वितीय दशाब्द के अन्त तथा तृतीय दुशाब्दी के प्रारम्भ में सामूदिक कृषि में सम्मिलित दोने के लिए बाध्य किये जाने से पूव कृष्न ने अपने मवेशियों को मार कर खा डाला अथवा बेच ढाला था । इसके अतिरिक्त सामूहिकीकरण के बाद से मवेदियों की उपेक्षा ही की गयी है । कोई कृषक स्वर्य अपने बछड़े की देख-भाल तो लाइ-प्यार से करेगा; किन्तु क्या वदद ्रफ जैसी सदै रात मँ उठ कर सामूहिक खेत के किसी बीमार पु की .सेवा-सुश्नप्ा करेगा परिणामस्वरूप लगने वाले आघात की आश्चर्यजनक, रूप से तथा अपने, स्वभावालु- सार उपेक्षा करते हुए, निकिता एस. खुश्वेव ने १९९८ की /तुठना में, जब, सामूहिक कृषि का आरम्भ हुआ था, और १९१६ के जार के युद्कालीन.रूस, की तुरना मे मवेदियों की संख्या में कमी के जो आंकड़े सितम्बर. १६५३. में प्रकाशित किये उनका स्पष्ट अर्थ यह्‌ दै कि आज प्रति व्यक्ति -पशुःउत्पुदन ;कम हो गृया दैः इस निष्कर्ष की पुष्टि माछो के मांस-भण्डारो की खिड़कियो, में रखे ओोमांस के दरक, सृत वत्तखों ओर सुर्गियों की काछ् प्रतिकृतियों से,:जो आश्चर्यजनक; सूप, जीवित, के सदस्य श्रतीत-होती, हैं और ; १९३२ में-मैं-जिनकी सराहा किया ;करता था, तथा भीतर-की -खूंटिय्ों, ताखों/ और रिफ़िजेरेटरों में द्याप्ततअभाव:से होती द), ८ मास्को के. कृजनेतस्की मोस्ट भर .यदरतेरहए--भेने- परासै-मूै - प्र एक्‌ भीड़ देखी तथा छोगों के, सिरों के कृपर,से-झांक:कर:देखने;पर.सुझे. एक; मेज: दिखायी




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