प्राकृतिक चिकित्सा क्यों | Prakrat Chikitsa Kyu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राकृतिक चिकित्सा पर श्रामेप २७.
कम हो रही थी, १५ दिन मे वह् भौ चली गयी । उस मदने
का खर्चे दमेशा की अपेक्षा कम आया । क्योकि दो दिन का
उपवास किया; उसमे कुछ खच हुआ नहीं । चाद में चालू खुराक
पर राते में पोच-सात्त दिन चक गये । उसमें भी खच कुछ कम
पड़ा । इस पर से आप देख सकेगे कि प्राकृतिक चिक्त्सा से
खचं ज्यादा पड़ने के वजाय कम आना चादिए । दूसरा कारण
यहद है कि केन्द्रीय उपचार में याने केन्द्र से जो उपचार किया
जाता है, वह् थोड़ा मर्हेगा पडेगा ही । केन्द्र मे व्यवस्थापक
डोकटर, उपचारक, सेवक; दिसाव-किताव रखने पड़ते है । खटियो
गदी त्यादि सुविधार्प रखनी पड़ती हैँ । यह खच रोगी पर ही
पढ़ता है। लेकिन चिकेन्द्रित याने घर-वेडे यदि उपचार किया
जाय, तो उसमे उपयुक्त खच नहीं होता और इस तरदद प्राकृतिक
उपचार सरता दी पड़ेगा । तीसरा कारण यह हैं कि प्राकृतिक
चिकित्सा हिन्दुस्तान मे अभी वाल्यावस्थामे है, इत कारण
सस्ते पचार की खोज अभी वाकी दहै! वह् निकट भविप्यमे
होगी; ऐसा चिश्वास है। यह सब होते हुए भी समग्र घष्टि से
देखा जाय, तो खादी जसे सहेंगी नहीं है; बसे दी पेंसे मे न
देखकर समय चष्टि से देखने पर केन्द्रीय उपचार शायद सहेँंगा
स लगे। क्योकि केन्द्र सें उपचार का ज्ञान सिछता हैः और
संयम का अभ्यास होता है! उसका भावी जीवन मे खभ
मिलता है । लाभ का मत्व ज्ञान और संयम से भविष्य
मे कभी वीमार पड़ने को सभावना नहीं रहती । इससे पैसे
की बचत ही होगी । इसका अथं यह कि प्राकृतिक उपचार
से जो रोगी स्वस्थ होकर जाते हैं; वे छान और संयम से
जीवस चिताते ट. सो भविप्य में डॉक्टर के पास जाने की उन्हें
कभी जरूरत नहीं रहगी आर इससे पंसे की वचत्त होगी; यह
रप्ट ट।
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