नरसीजी रो माहेरो | Narsiji Ro Mahero

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Narsiji Ro Mahero by जेठालाल नारायण त्रिवेदी - Jethalal Narayan trivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जेठालाल नारायण त्रिवेदी - Jethalal Narayan trivedi

Add Infomation AboutJethalal Narayan trivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
११ गोस्वामीजी ने मीराँ के पत्र के प्रत्युत्तर में इस तरह लिखा-- “जिनके प्रिय न राम वैदेहि। तजिये ताहि कोटी बरी सम, जद्यपि परम सनेही ॥। तात मात भ्राता सुत पति हित, इन समान कोउ नाहीं । रघुपति विमुख जानि लघुतृण इव, तजन सुकृत उराहीं ॥ ग्रंजन कहा श्रांखि जेहि फूट, बहु तक कहउ कहाँली 1८7”! कहते हैं कि इस मार्गदर्शन से मीराँ का मन. हढ बना श्रौर उसने मेवाड़ का त्याग कर दिया । # इस प्रकार एक रोचक कहानी वनाई गई है । किन्तु एेतिहासिक कालक्रम से देखा जाय तो मीराँ ग्रौर तुलसीदास के वीच पत्र-व्यवहार श्रसंभवित था । क्यों कि गुसाई तुलसीदास सन्‌ १५३३ (संत्रत १४८९) में . पैदा हुए श्रौर यदि मीराँबाई, के देहान्त का समय सच १४४६ (सवत १६०२) में माना जाय तो उस समय गुसांईजी की झायु चौदह वर्ष की होती है ।* यह श्रायु गुँसांईजी की भक्ति श्र प्रसिद्धि की किस प्रकार मानी जाय ? तुलसीदासजी के जन्म के प्रारसिक वर्षों में तो मीराँ ने मेवाइ का त्याग भी कर दिया था । फिर तुलसीदासजी को पत्र क्यों श्रौर किस तरह लिखा. जा सकता है ? उपरोक्त कारणों से मीराँ श्रौर तुलसीदास के बीच पत्र-ब्यौहार संभवित नहीं था, ऐसा श्रनेक विद्वानों का मत उचित ही है। मीराँ के पत्रवाला पद कृत्रिम है । तुलसीदासजी के प्रत्युत्तर रूप में जो पद बताया जाता है उसमें कहीं - पर भी . मीराँ का नामोल्लेख नहीं है । उक्त पद साशान्य भाव से प्रभु भक्ति हेतु लिखा गया पद है । ' (३) नरसी मेहता श्रौर सीराँ :-- कुछ समय से एक नयी जनश्रुति का जन्म हुमा है। इस श्रुति के श्रनुसार नरसी मेहता श्रौर मीराँबाई के बीच पत्र-ब्यौहार होने की घटना वर्शित हो रहो है । १. तुलसीदास (जेठालाल त्रिवेदी) पृ० ४४ । २. 'मीराँबाई की झाव्दावली' (बेल वेडियर प्रेस : प्रयाग) 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now