सौंदर्य का तात्पर्य | Saundarya Ka Tatparya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
137
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामकीर्ति शुक्ल - RAMKIRTI SHUKLA
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रक्निया सुष्टि के प्रारंभ से अनवरत रूप से चली आ रही हैं। यद्यपि वैज्ञानिक
की खोज पर्ण और अमंदिग् नही होती फिर भी वह काफी कुछ प्रकाशित करने
में सफ़लें हो जाता हैं । उसने सृष्टि की यंत्रावली तो खोज लिया है लेकिन इसे
परिचाछित करने वाली शक्ति का बह पता नहीं रूगा पाया हैं । जीवन और मृत्यु
के रहस्य को बहू अभी तक नहीं सुलझा पाया हैं । वैज्ञानिक की इस सीमा से
सैंदर्यणास्त्री का कार्य भी अधूरा रह जाता है । लेकिन, फिर भी, वैज्ञानिक द्वारा
अद्भ-आनोकित पथ सौंदर्यशास्त्री के लिए सहायक हो सकता है । जान रस्किने से
इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है । उसने दुश्य-जगत को परिचालित करने
वाछे नियमों को खोजने का प्रयास किया । उसका विचार यह था कि चू कि सृष्टि
का अनुभव ही कलाकार का कच्चामाल होता हैं अतः कला का. विदलेपण करने
के पहले इस सृष्टि का विषलेषण उपयोगी हो सकता हैं ।
इसी प्रणाली से ही हम अपनी दो मुख्य समस्याओं का समाधान कर पायेंगे,
अर्थात्, किस प्रकार प्रकृति का अमुभव मनुष्य के सौंदर्य-बोध को प्रतिबंधित करता
हैं, और फिर उसके अनुभव की सीमाओं के भीतर कैसे प्राकतिक उपकरण कम
अथवा अधिक सुंदर प्रतीत होते है ।
एक वंजुफक धरती पर भिरता ह ओर फिर घटनाओं की एक् श्वुंखछा का
रासभ ष्टौ जाता है ! अनेकों गृह नियम परिचाल्ति हो जाते हैँ । इन सभी शक्तियों
का मिश्रित परिणाम होता एक वंजुवृक्ष, एक ऐसा वंजुवृक्ष जो अन्य वजुवुक्षो
से भिन्त होता है और यहु भिन्नता मत्र संयोग न होकर कारण-कारयो के एक
विशाल अनुक्रम का परिणाम होती है । जो नियम बेनुफल पर लागू होता है व्रही
भम्स वस्तुओं पर भी लागू होता हैं ।
नियमवद्ध होने का तात्पर्य होता हू एकरूपता । प्रकृति के किसी एक लियम
की लीजिये, अन्य नियमों को निरस्त कर दीजिये और परिणाम होगा एक पेटर्न ।
कल्पना की जिये कि वंजुफल एक नियम से आबद्ध होने के परचात् कुछ भी नहीं
करता ; वह नियम ऐसा हैं जो इसे अंकुरित होने, फंलमे और बढ़ने के लिए
आध्य करता हूँ। इसका परिधाम होगा एक ऐसा संसार जिसमें सभी बंजुवूक्ष एक
हो पैटर्न पर संरकचित होते हैं, एक ऐसा संसार जिसमें भाश्चर्य के लिए कोई
स्थान नहीं है । लेकिन उसमें एक और नियम, उदाहुरणार्थ गुरुत्वाकर्षण का
नियम, जोड़ दीजिए । प्रत्येक बिदु पर विकास और गुसुूत्वाकर्षण में संघर्ष होता
दीखे पड़ेगा और इस संघर्ष से एक नया परिणाम पैदा होगा । और फिर एक
स्थिति ऐसी आती हैं जब हमारी कल्पना का भूल वंजुवूक्ष पहचान में ही नहीं
आमा ! फिर भी इसमें आये हुये सभी परिवर्तन प्रकृति के किसी-न-किसी नियम
से परिभालित हुये हैं ।
3 यं का उसपर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...